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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ)
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा व गुणगान) अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं उसी से मदद मांगते हैं और उसी से क्षमा याचना करते हैं तथा हम अपने नफस की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत दे दे उसे कोई पथ्भ्स्थ करनेवाला नहीं, और जिसे गुमराह करदे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं. हम्द व सना के बाद:
हर प्रकार की प्रशंसा अल्लाह के लिए ही योग्य है.
१. मुसलमान के लिए एक पल के लिए भी यह संदेह करना उचित नहीं कि अल्लाह त-आला के क़ानून तत्वदर्शी व बुद्धिपूर्ण हैं, और इस बात को जान लेना उचित है कि अल्लाह तआला ने जिस चीज़ का आदेश दिया है और जिस चीज़ से मना किया है उसके अन्दर सम्पूर्ण और व्यापक हिकमत (तत्वदर्शिता) है और वही सीधा पथ और एक मात्र रास्ता है कि मनुष्य सुरक्षा और संतुष्टि के साथ जीवन यापन करे और उसकी इज्ज़त और
आबरू (सतीत्व), बुद्धि और स्वास्थ्य की सुरक्षा हो और वह उस प्रकृति के अनुरूप हो जिस पर अल्लाह तआला ने पैदा किया है.
कुछ विधर्मी और स्वधर्मभ्रष्ट लोगों ने इस्लाम और उसके प्रावधानों और नियमों पर हमला करने का प्रयास किया है अतः उन्होंने तलाक़ और बहु विवाह की निंदा की है और शराब की अनुमति दी है, और जो आदमी उनके समाज की स्तिथि को देखेगा तो उसे उस दयनीय स्तिथि और दुर्दशा का पता चल जायेगा जहाँ वे समाज पहुँच चुके है. जब उन्होंने तलाक़ को अविकार किया तो उनका स्थान हत्या ने ले लिया. जब उन्होंने ने बहु-विवाह को अस्वीकार किया तो उसके बदले में रखैल (मिस्ट्रेस) रखने की प्रथा चल पड़ी, और जब उन्होंने शराब को वैध ठहरा लिया तो सभी रंग रूप की बुराइयां और अनैतिक कार्यों का फैलाव हुआ.
वे दोनों यानि पुरुष समलैंगिकता और स्त्री समलैंगिकता अल्लाह त-आला के उस प्राकृतिक स्वभाव के विरुद्ध है जिस पर अल्लाह त-आला ने मनुष्यों को – बल्कि पशुवों को भी पैदा किया है कि पुरुष स्त्री का और स्त्री पुरुष की इछ्हुक होती है और जिसने इसका विरोध किया उसने फ़ितरत (प्राकृतिक स्वभाव) का विरोध किया.
पुरुष और स्त्री समलैंगिकता के फैलाव ने ढेर सारी ने बीमारियों को जन्म दिया है जिनके अस्तित्व का पूरब और पश्चिम के लोग इन्कार नहीं कर सकते, यदि इस विषमता के परिणामों में से केवल ‘एड्स’ की बीमारी ही होती जो मनुष्य के अन्दर प्रतिरक्षा प्रणाली को धरम-भरम (नष्ट) कर देती है, तो बहुत काफी है.
इसी प्रकार यह परिवारों के विघटन और उनके टुकड़े-टुकड़े हो जाने और काम-काज और पढाई-लिखाई को त्याग कर इस प्रकार के अप्राकृतिक कृत्यों में व्यस्त हो जाने का कारण बनता है.
चूँकि इसका निषेध उसके पालनहार की ओर से आया है अतः मुसलमान को इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि चिकित्सा विज्ञान अल्लाह त-आला के के वर्जित किये हुए अपराध से होने वाली क्षति और नुक्सान को सिद्ध करे, बल्कि उसे इस बात का डरीं विश्वास होना चाहिए कि अल्लाह त-आला उसी चीज़ हो वैध करता है जिसमें लोगों का हित और कल्याण हो और यह आधुनिक खोज अल्लाह त-आला की महान हिकमत और तत्वदर्शिता के प्रति उसके संतोष को बढ़ाते हैं.
२. स्त्री की समलैंगिकता (Lesbianism) का अर्थ यह है कि एक महिला दुसरे महिला के साथ ऐसा ही सम्बन्ध स्थापित करे जिस तरह एक पुरुष महिला के साथ करता है.
पुरुष समलैंगिकता (Homosexuality) का अर्थ यह है कि पुरुष के गुदा में लिंग प्रवेश कर सम्बन्ध बनाना, जो कि अल्लाह के ईश-दूत लूत अलैहिस्सलाम के समुदाय के शापित लोगों की करवाई है.
अल्लाह त-आला कुरआन में फरमाता है कि:
(وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ مَا سَبَقَكُمْ بِهَا مِنْ أَحَدٍ مِنَ الْعَالَمِينَ. إِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِنْ دُونِ النِّسَاءِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ )الأعراف)
अर्थात
“और हमने लूत (अ.) को भेजा जबकि उन्होंने अपनी काम से कहा कि क्या तुम ऐसा बुरा काम करते हो जिसे तुमसे पहले सारी दुनिया में किसी ने नहीं किया? तुम महिलाओं को छोड़ कर पुरुषों के साथ सम्भोग करते हो. बल्कि तुम तो हद से गुज़र गए हो.” (सूरतुल आराफ 80-81)
और फ़रमाया:
(إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ نَجَّيْنَاهُمْ بِسَحَرٍ (القمر:34 )
अर्थात
“बेशक हमने उन पर पत्थर की बारिश करने वाली हवा भेजी, सिवाय लूत (अ) के परिवार वालों के, उन्हें सुबह के वक़्त हमने मुक्ति प्रदान कर दी.” (सूरतुल क़मर 34)
इसी तरह अल्लाह त-आला अपनी किताब कुरआन में कई जगह फरमाता है. अल्लाह त-आला फरमाता है सूरतुल अनकबूत:२८, सूरतुल अम्बिया ७४, सूरतुल नम्ल ५४-५८ और सुरतुन्निसा १६ में.
यही नहीं वेदों में भी समलैंगिकता का निषेध है…
आपके विचार का स्वागत है.
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