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अक्सर कुछ लोगों के मन में यह आता ही होगा कि जानवरों की हत्या एक क्रूर और निर्दयतापूर्ण कार्य है तो क्यूँ लोग मांस खाते हैं? जहाँ तक मेरा सवाल है मैं एक मांसाहारी हूँ. मुझसे मेरे परिवार के लोग और जानने वाले (जो शाकाहारी हैं) अक्सर कहते हैं कि आप माँस खाते हो और बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार करके जानवरों के अधिकारों का हनन करते हो.
शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है, बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं. निसंदेह दुनिया में माँसाहारों की एक बड़ी संख्या है और अन्य लोग मांसाहार को जानवरों के अधिकार (जानवराधिकार) का हनन मानते हैं.
मेरा मानना है कि इंसानियत का यह तकाज़ा है कि इन्सान सभी जीव और प्राणी से दया का भावः रखे| साथ ही मेरा मानना यह भी है कि ईश्वर ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे बड़े हर प्रकार के जीव-जंतुओं को हमारे लाभ के लिए पैदा किया गया है. अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम ईश्वर की दी हुई अमानत और नेमत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करते है.
आइये इस पहलू पर और इसके तथ्यों पर और जानकारी हासिल की जाये…
1- माँस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है
माँस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है. इसमें आठों अमीनों असिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति खाने से पूरी हो सकती है. गोश्त यानि माँस में लोहा, विटामिन बी वन और नियासिन भी पाए जाते हैं (पढ़े- कक्षा दस और बारह की पुस्तकें)
2- इन्सान के दांतों में दो प्रकार की क्षमता है
अगर आप घांस-फूस खाने वाले जानवर जैसे बकरी, भेड़ और गाय वगैरह के तो आप उन सभी में समानता पाएंगे. इन सभी जानवरों के चपटे दंत होते हैं यानि जो केवल घांस-फूस खाने के लिए उपयुक्त होते हैं. यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता और बाघ आदि के दंत देखें तो उनमें नुकीले दंत भी पाएंगे जो कि माँस खाने में मदद करते हैं. यदि आप अपने अर्थात इन्सान के दांतों का अध्ययन करें तो आप पाएंगे हमारे दांत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं. इस प्रकार वे शाक और माँस दोनों खाने में सक्षम हैं.
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दांत क्यूँ देता. यह इस बात का सबूत है कि उसने हमें माँस और सब्जी दोनों खाने की इजाज़त दी है.
3- इन्सान माँस और सब्जियां दोनों पचा सकता है
शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल केवल सब्जियां ही पचा सकते है और मांसाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल माँस पचाने में सक्षम है लेकिन इन्सान का पाचन तंत्र दोनों को पचा सकता है.
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमको केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यूँ देता जो माँस और सब्जी दोनों पचा सकता है.
4- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है
एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है. मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं.
5- पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है
पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है. कुरआन की आयतें इस बात की सबूत है-
“ऐ ईमान वालों, प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो| तुम्हारे लिए चौपाये जानवर जायज़ है, केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है” (कुरआन 5:1)
“रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी और अन्य कितने लाभ. उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो” (कुरआन 16:5)
“और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदहारण हैं. उनके शरीर के अन्दर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं और इसके अलावा उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका माँस तुम प्रयोग करते हो” (कुरआन 23:21)
6- हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की अनुमति देतें है !
बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं. उनका विचार है कि माँस सेवन धर्म विरुद्ध है. लेकिन सच ये है कि हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की इजाज़त देतें है. ग्रन्थों में उनका ज़िक्र है जो माँस खाते थे.
A) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनु स्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि-
“वे जो उनका माँस खाते है जो खाने योग्य हैं, अगरचे वो कोई अपराध नहीं करते. अगरचे वे ऐसा रोज़ करते हो क्यूंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है“
(B) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है-
“माँस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है“
(C) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि –
“स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं“
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठर और पितामह के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए? प्रसंग इस प्रकार है –
“युधिष्ठिर ने कहा, “हे महाबली!मुझे बताईये कि कौन सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेट की जाये तो उनको शांति मिले? कौन सा हव्य सदैव रहेगा ? और वह क्या जिसको यदि सदैव पेश किया जाये तो अनंत हो जाये?”
भीष्म ने कहा, “बात सुनो, हे युधिष्ठिर कि वे कौन सी हवी है जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित है और कौन से फल है जो प्रत्येक से जुडें हैं| और श्राद्ध के समय शीशम, बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाये तो पूर्वजो को एक माह तक शांति मिलती है. यदि मछली भेंट की जाये तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है. भेंड का माँस तीन माह तक उन्हें शांति देता है| खरगोश का माँस चार माह तक, बकरी का माँस पांच माह और सूअर का माँस छह माह तक, पक्षियों का माँस सात माह तक, पृष्ठा नामक हिरन से वे आठ माह तक, रुरु नामक हिरन के माँस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं. “GAWAYA” के माँस से दस माह तक, भैस के माँस से ग्यारह माह तक और गौ माँस से पूरे एक वर्ष तक. प्यास यदि उन्हें घी में मिला कर दान किया जाये यह पूर्वजों के लिए गौ माँस की तरह होता है| बधरिनासा (एक बड़ा बैल) के माँस से बारह वर्ष तक और गैंडे का माँस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्यु वर्ष पर भेंट किया जाये तो यह उन्हें सदैव सुख शांति में रखता है. क्लासका नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियां और लाल बकरी का माँस भेंट किया जाये तो वह भी अनंत सुखदायी होता है. अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत काल तक सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का माँस भेंट करना चाहिए“
7- हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावित
हालाँकि हिन्दू धर्म ग्रन्थ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं, फिर भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली, क्यूंकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे.
8- पेड़ पौधों में भी जीवन
कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार अपना लिया क्यूंकि वे पूर्णरूप से जीव-हत्या से विरुद्ध है. अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता. आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है. अतः जीव हत्या के सम्बन्ध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता.
9- पौधों को भी पीड़ा होती है
वे आगे तर्क देते हैं कि पौधों को पीड़ा महसूस नहीं होती, अतः पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है. आज विज्ञानं कहता है कि पौधे भी पीड़ा महसूस करते हैं लेकिन उनकी चीख इंसानों के द्वारा नहीं सुनी जा सकती. इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्ट्ज़ से 20,000 हर्ट्ज़ तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है| एक कुत्ते में 40,000 हर्ट्ज़ तक सुनने की क्षमता है. इसी प्रकार खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्ट्ज़ से कम होती है. इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं. एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है| अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का अविष्कार किया जो पौधे की चीख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है. जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को तुंरत ज्ञान हो जाता था. वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते है कि पौधे भी पीड़ा, दुःख-सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं.
10- दो इन्द्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं !!!
एक बार एक शाकाहारी ने तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इन्द्रियाँ होती है जबकि जानवरों में पॉँच होती हैं| अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुक़ाबले छोटा अपराध है.
“कल्पना करें कि अगर आप का भाई पैदाईशी गूंगा और बहरा है, दुसरे मनुष्य के मुक़ाबले उनमें दो इन्द्रियाँ कम हैं. वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायधीश से कहेंगे कि वह हत्या करने वाले (दोषी) को कम दंड दें क्यूंकि आपके भाई की दो इन्द्रियाँ कम हैं. वास्तव में आप ऐसा नहीं कहेंगे. वास्तव में आपको यह कहना चाहिए उस अपराधी ने एक निर्दोष की हत्या की है और न्यायधीश को उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए.“
पवित्र कुरआन में कहा गया है –
“ऐ लोगों, खाओ जो पृथ्वी पर है लेकिन पवित्र और जायज़ (कुरआन 2:168)
-सलीम खान
Filed under: माँसाहार, माँसाहार या शाकाहार, शाकाहार
>Apna to dil ganwaara nahi karta.-Zakir Ali ‘Rajnish’ { Secretary-TSALIIM & SBAI }
>बहुत लाभदायक लेख है . वास्तव में इस्लाम प्राकिर्तिक नियम है जो मानव प्रक्रति से मेल खता है
>बहुत लाभदायक लेख है . वास्तव में इस्लाम प्राकिर्तिक नियम है जो मानव प्रक्रति से मेल खता है
>"मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है, ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है| कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है कि वह सब्जियां भी खा सकता है और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए | इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए, ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा | अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां | आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं"
>"मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है, ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है| कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है कि वह सब्जियां भी खा सकता है और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए | इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए, ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा | अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां | आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं"
>1) I do not consume food after looking into books.2) I eat veg. and support veg. because a) Its does not involve live cruelty with a life (of whose pain we hear even then they continue) and plants anyway after ripening of wheat, apple, mango and pulses etc. shed of them and its collected by us. salt comes from sea etc.3) Do you remember Mad Cow, H1N1 …. its a long list.4) We assume ourself as thoughtful animal, we have developed argricultural, medicinal and astronomy, mathematical models and methods. Still should we do same things as those incapable animals do – eat raw meat, kill someone.5) Do look at yourself what you have become, a merchant of religious thought ….. selling 1400 old concepts in new packages. request you to go PETA site and learn some humanity, I think you know the URL ……….
>1) I do not consume food after looking into books.2) I eat veg. and support veg. because a) Its does not involve live cruelty with a life (of whose pain we hear even then they continue) and plants anyway after ripening of wheat, apple, mango and pulses etc. shed of them and its collected by us. salt comes from sea etc.3) Do you remember Mad Cow, H1N1 …. its a long list.4) We assume ourself as thoughtful animal, we have developed argricultural, medicinal and astronomy, mathematical models and methods. Still should we do same things as those incapable animals do – eat raw meat, kill someone.5) Do look at yourself what you have become, a merchant of religious thought ….. selling 1400 old concepts in new packages. request you to go PETA site and learn some humanity, I think you know the URL ……….
>हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि किसी खूंटे से बंढा हुआ धर्म नहीं है। यह नहीं सिखाता कि "दद्दा कहि गये सरसो ही लादना'। यह खुले दिमाग से सत्य के अन्वेषण का दूसरा नाम है। 'सनातन' होने का मतलब ही है देश और काल के अनुसार बदलने का दर्शन। किसी चीज से जबर्जस्ती चिपके रहना हिन्दू धर्म के विपरीत है। उपरोक्त दर्शन के कारण ही हिन्दूशास्त्रों में जो कुछ कहा गया है वह बहुत उद्दात विचार (ब्राड माइन्डेडनेस) का दूसरा नाम है। इसके कुछ महान दर्शन देखिये-सत्यमेव जयते।सर्वे भवन्तु सुखिन:। ( सभी सुखी हों)असतो मा सद् गमय। (मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो)तमसो मा ज्योतिर्गमय (मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो)मृत्योर्मामृतम् गमय ( मृत्यु से मुझे अमरता की ओर ले चलो)अति सर्वत्र वर्जयेत। (किसी भी काम में अति करने से बचना चाहिये)अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतकर्म शुभाशुभम्। (किये गये शुभ या अशुभ कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा)सत्यं ब्रह्म। (सत्य ही भगवान है)हिंसा परमो धर्म:। (अहिंसा परम धर्म है; अर्थात अहिंसा सभी धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है।)हिन्दू धर्म का हृदय इतना विशाल है कि उसके अन्दर घोर आस्तिक के विचार का भी सम्मान है और घोर नास्तिक का भी। हिन्दुओं ने कोई एक पुस्तक लिखकर उसको कभी अन्तिम पुस्तक नहीं कहा। किसी ने व्याकरन पर् लिखा तो किसी ने योग पर। किसी ने गणित पर तो किसी ने मेडिसिन पर। किसी ने कामशास्त्र पर तो किसी ने नाट्यशास्त्र पर ….। और यह सिलसिला अन्तहीन है। हिन्दू किसी एक पुस्तक से बंधा नहीं है; किसी स्वघोषित पैगम्बर का पिछलग्गू नहीं रह सकता; किसी समयातीत विचार या नीति से चिपका रहना उसको अच्छा नही लगता।उपरोक्त विशेषताओं की एक बानगी देखिये कि मांस-भक्षण और अन्य प्रवृत्तियों के बारे में किसी मनीषी ने क्या बात कही है-न मांसभक्षणे दोषं, न मद्ये न च मैथुने।प्रवृति एषा मनुष्याणां, निर्वृतिस्तु महाफला।(अर्थात न मांस खाने में दोष है न मद्यपान में न मैथुन करने में। यह तो मनुष्यों की प्रवृत्ति (सहज स्वभाव) है। किन्तु इनसे दूर रहना या निर्वृत्ति, महाफलकारी है। )
>हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि किसी खूंटे से बंढा हुआ धर्म नहीं है। यह नहीं सिखाता कि "दद्दा कहि गये सरसो ही लादना'। यह खुले दिमाग से सत्य के अन्वेषण का दूसरा नाम है। 'सनातन' होने का मतलब ही है देश और काल के अनुसार बदलने का दर्शन। किसी चीज से जबर्जस्ती चिपके रहना हिन्दू धर्म के विपरीत है। उपरोक्त दर्शन के कारण ही हिन्दूशास्त्रों में जो कुछ कहा गया है वह बहुत उद्दात विचार (ब्राड माइन्डेडनेस) का दूसरा नाम है। इसके कुछ महान दर्शन देखिये-सत्यमेव जयते।सर्वे भवन्तु सुखिन:। ( सभी सुखी हों)असतो मा सद् गमय। (मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो)तमसो मा ज्योतिर्गमय (मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो)मृत्योर्मामृतम् गमय ( मृत्यु से मुझे अमरता की ओर ले चलो)अति सर्वत्र वर्जयेत। (किसी भी काम में अति करने से बचना चाहिये)अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतकर्म शुभाशुभम्। (किये गये शुभ या अशुभ कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा)सत्यं ब्रह्म। (सत्य ही भगवान है)हिंसा परमो धर्म:। (अहिंसा परम धर्म है; अर्थात अहिंसा सभी धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है।)हिन्दू धर्म का हृदय इतना विशाल है कि उसके अन्दर घोर आस्तिक के विचार का भी सम्मान है और घोर नास्तिक का भी। हिन्दुओं ने कोई एक पुस्तक लिखकर उसको कभी अन्तिम पुस्तक नहीं कहा। किसी ने व्याकरन पर् लिखा तो किसी ने योग पर। किसी ने गणित पर तो किसी ने मेडिसिन पर। किसी ने कामशास्त्र पर तो किसी ने नाट्यशास्त्र पर ….। और यह सिलसिला अन्तहीन है। हिन्दू किसी एक पुस्तक से बंधा नहीं है; किसी स्वघोषित पैगम्बर का पिछलग्गू नहीं रह सकता; किसी समयातीत विचार या नीति से चिपका रहना उसको अच्छा नही लगता।उपरोक्त विशेषताओं की एक बानगी देखिये कि मांस-भक्षण और अन्य प्रवृत्तियों के बारे में किसी मनीषी ने क्या बात कही है-न मांसभक्षणे दोषं, न मद्ये न च मैथुने।प्रवृति एषा मनुष्याणां, निर्वृतिस्तु महाफला।(अर्थात न मांस खाने में दोष है न मद्यपान में न मैथुन करने में। यह तो मनुष्यों की प्रवृत्ति (सहज स्वभाव) है। किन्तु इनसे दूर रहना या निर्वृत्ति, महाफलकारी है। )
>अनुनाद जी से पूरी तरह सहमत.
>अनुनाद जी से पूरी तरह सहमत.
>अनुनाद सिंह की मने तो हिन्दू धर्म की व्याख्या हो ही नहीं सकती क्यूंकि वह बदलती रहती है….उनके अनुसार वेदों और पुराणों की बातें बेमानी हैं. यहाँ तक कि महाभारत की भी…अगर हम वेदों और पुराणों और महाभारत और रामायण और इसी तरह गीता आदि में कमियां निकले तो आप सब खड़े हो जाओगे….और अगर हम वेदों और पुराणों और महाभारत और रामायण और इसी तरह गीता आदि का हवाला दें कि आपकी किताब में यह लिखा है तो आप कहोगे…. नहीं वह तो पुराना है अब नहीं चलेगा…वैसे मैं बताऊँ आपका कहना सही है वह वाकई उस समय औ काल से हिसाब से था… ईश्वर ने वेदों, बाइबल आदि को उस समय के लिए ही भेजा था…अब के जीवन में वह अप्रासंगिक ही हैं….लेकिन ईश्वर ने कुरआन में अपना अंतिम और मुक़म्मल सन्देश पूरी इंसानियत (मानवता) के लिए भेज दिया है और वह आखिरी दिन तक के लिए कम्प्लीट हो चूका है… ऐसा होना वेदों में भी है बाइबल में भी… और ना जाने कितनी ही दुसरे धर्म की किताबो में लिखा है….यह मैं नहीं कह रहा….. आप स्वयं पढ़ कर देख लें..
>अनुनाद सिंह की मने तो हिन्दू धर्म की व्याख्या हो ही नहीं सकती क्यूंकि वह बदलती रहती है….उनके अनुसार वेदों और पुराणों की बातें बेमानी हैं. यहाँ तक कि महाभारत की भी…अगर हम वेदों और पुराणों और महाभारत और रामायण और इसी तरह गीता आदि में कमियां निकले तो आप सब खड़े हो जाओगे….और अगर हम वेदों और पुराणों और महाभारत और रामायण और इसी तरह गीता आदि का हवाला दें कि आपकी किताब में यह लिखा है तो आप कहोगे…. नहीं वह तो पुराना है अब नहीं चलेगा…वैसे मैं बताऊँ आपका कहना सही है वह वाकई उस समय औ काल से हिसाब से था… ईश्वर ने वेदों, बाइबल आदि को उस समय के लिए ही भेजा था…अब के जीवन में वह अप्रासंगिक ही हैं….लेकिन ईश्वर ने कुरआन में अपना अंतिम और मुक़म्मल सन्देश पूरी इंसानियत (मानवता) के लिए भेज दिया है और वह आखिरी दिन तक के लिए कम्प्लीट हो चूका है… ऐसा होना वेदों में भी है बाइबल में भी… और ना जाने कितनी ही दुसरे धर्म की किताबो में लिखा है….यह मैं नहीं कह रहा….. आप स्वयं पढ़ कर देख लें..
>अरे भाई हम तो केवल वही खा सकते हैं जिसे कि कच्चा भी खाया जा सके जितनी भी शाकाहारी चीजें है उन्हें कच्चा खाया जा सकता है और मांसाहार में नहीं, उसमें तो केवल मसाले का स्वाद होता है, क्या कच्चे मांस में कोई स्वाद होता है या खा सकते हैं ?
>अरे भाई हम तो केवल वही खा सकते हैं जिसे कि कच्चा भी खाया जा सके जितनी भी शाकाहारी चीजें है उन्हें कच्चा खाया जा सकता है और मांसाहार में नहीं, उसमें तो केवल मसाले का स्वाद होता है, क्या कच्चे मांस में कोई स्वाद होता है या खा सकते हैं ?
>आप चाहे जितने तर्क दे दे ..लेकिन सचाई यही है की मानव शरीर मांसाहार के लिए अनुकूल नहीं है …!मानव को bahgvaan ne…शाकाहारी बनाया है और यही सच्चाई है..
>आप चाहे जितने तर्क दे दे ..लेकिन सचाई यही है की मानव शरीर मांसाहार के लिए अनुकूल नहीं है …!मानव को bahgvaan ne…शाकाहारी बनाया है और यही सच्चाई है..
>सलीम भाई ने यह पोस्ट कुछ महीनों पहले एक दुसरे कोम्मुनिटी ब्लौग पर डाली थी. वहां मैंने उन्हें माकूल जवाब दिया था लेकिन मुझसे बेहतर जवाब सुधांत सिंघल जी ने दिया था. देखें नीचे दी गई लिंक्स.http://sushantsinghal.blogspot.com/2009/03/blog-post_07.htmlhttp://sushantsinghal.blogspot.com/2009/03/blog-post_503.html
>सलीम भाई ने यह पोस्ट कुछ महीनों पहले एक दुसरे कोम्मुनिटी ब्लौग पर डाली थी. वहां मैंने उन्हें माकूल जवाब दिया था लेकिन मुझसे बेहतर जवाब सुधांत सिंघल जी ने दिया था. देखें नीचे दी गई लिंक्स.http://sushantsinghal.blogspot.com/2009/03/blog-post_07.htmlhttp://sushantsinghal.blogspot.com/2009/03/blog-post_503.html
>यदि सुशांत जी के तगडे जवाब के लिंक पर जाने पर समस्या है तो सीधे लाभ उठायें ताकि सलीम खान के कुतर्कों का पर्दा फास हो सके ||उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा । इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में (www.swachchsandesh.blogspot.com) बार-बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा ! भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैं ! यदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते। सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये। मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते, बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो-तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं। यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा, रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें। यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के हिसाब से की है तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर हम मनुष्य के दांतों का, पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं? पाचन संस्थान की बात चल निकली है तो इतना बता दूं कि सभी शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं। वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई। सुशान्त सिंहल
>यदि सुशांत जी के तगडे जवाब के लिंक पर जाने पर समस्या है तो सीधे लाभ उठायें ताकि सलीम खान के कुतर्कों का पर्दा फास हो सके ||उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा । इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में (www.swachchsandesh.blogspot.com) बार-बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा ! भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैं ! यदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते। सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये। मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते, बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो-तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं। यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा, रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें। यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के हिसाब से की है तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर हम मनुष्य के दांतों का, पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं? पाचन संस्थान की बात चल निकली है तो इतना बता दूं कि सभी शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं। वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई। सुशान्त सिंहल
>यह बेसिर-पैर का विवाद है .जब आदिम मनुष्य का जन्म हुआ था तभी से शाकाहर और माँसाहार चले आ रहे है .धर्मग्रंथों और सर्व शक्तिमान ईश्वर का हवाला देने की ज़रूरत नहीं . लाखों वर्षों मे मनुष्य का यह पाचन तंत्र स्थायी हो गया है कि वह सुपाच्य वस्तुए ग्रहन कर सकता है अग्नि के खोज से पूर्व मनुश्य कच्चा माँस भी हज़म कर लेता था .कई जहरीले फल खाने के बाद यह तय हुआ कि यह अखाद्य है उन्हे अगली पीढीयों को बताया गया . यह एक अनवरत यात्रा है . पुस्तके अपनी पसन्द से मनुष्य ही लिखता है . कल को कोई सिद्ध कर दे कि घास मनुष्य के लिये फायदेमन्द है ..तो क्या आप घास खाने लगेंगे ? बेचारे पशु फिर क्या करेंगे . और दाँत का उदाहरन निरर्थक है आज कल मिक्सी मे पीसकर भी व्यंजन बनाये जाते है.
>यदि सुशांत जी के तगडे जवाब के लिंक पर जाने पर समस्या है तो सीधे लाभ उठायें ताकि सलीम खान के कुतर्कों का पर्दा फास हो सके || उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा । इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में (www.swachchsandesh.blogspot.com) बार-बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा ! भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैं ! यदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते। सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये। मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते, बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो-तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं। यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा, रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें। यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के हिसाब से की है तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर हम मनुष्य के दांतों का, पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं? पाचन संस्थान की बात चल निकली है तो इतना बता दूं कि सभी शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं। वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई। सुशान्त सिंहल July 31, 2009 11:39 PM
>यह बेसिर-पैर का विवाद है .जब आदिम मनुष्य का जन्म हुआ था तभी से शाकाहर और माँसाहार चले आ रहे है .धर्मग्रंथों और सर्व शक्तिमान ईश्वर का हवाला देने की ज़रूरत नहीं . लाखों वर्षों मे मनुष्य का यह पाचन तंत्र स्थायी हो गया है कि वह सुपाच्य वस्तुए ग्रहन कर सकता है अग्नि के खोज से पूर्व मनुश्य कच्चा माँस भी हज़म कर लेता था .कई जहरीले फल खाने के बाद यह तय हुआ कि यह अखाद्य है उन्हे अगली पीढीयों को बताया गया . यह एक अनवरत यात्रा है . पुस्तके अपनी पसन्द से मनुष्य ही लिखता है . कल को कोई सिद्ध कर दे कि घास मनुष्य के लिये फायदेमन्द है ..तो क्या आप घास खाने लगेंगे ? बेचारे पशु फिर क्या करेंगे . और दाँत का उदाहरन निरर्थक है आज कल मिक्सी मे पीसकर भी व्यंजन बनाये जाते है.
>यदि सुशांत जी के तगडे जवाब के लिंक पर जाने पर समस्या है तो सीधे लाभ उठायें ताकि सलीम खान के कुतर्कों का पर्दा फास हो सके || उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा । इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में (www.swachchsandesh.blogspot.com) बार-बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा ! भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैं ! यदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते। सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये। मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते, बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो-तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं। यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा, रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें। यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के हिसाब से की है तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर हम मनुष्य के दांतों का, पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं? पाचन संस्थान की बात चल निकली है तो इतना बता दूं कि सभी शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं। वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई। सुशान्त सिंहल July 31, 2009 11:39 PM
>लेकिन शरद जी क्या आपको मालूम नहीं की , जब वो कुरानी बक्वासें लिखी गयी थी तब मिक्सी का अविष्कार नहीं हुआ था , लेकिन इन कम- अकलों को कौन समझाए |
>लेकिन शरद जी क्या आपको मालूम नहीं की , जब वो कुरानी बक्वासें लिखी गयी थी तब मिक्सी का अविष्कार नहीं हुआ था , लेकिन इन कम- अकलों को कौन समझाए |
>सुशांत जी से साभार …………….पहला भाग मांसाहार या शाकाहार ! बहस बहुत उपयोगी है और मनोरंजक भी ! मैं स्वयं पूर्णतः शाकाहारी हूं पर मेरे विचार में मैं शाकाहारी इसलिये हूं क्योंकि मेरा जन्म एक शाकाहारी माता-पिता के घर में हुआ और मुझे बचपन से यह संस्कार मिले कि शाकाहार मांसाहार की तुलना में बेहतर है। आज मैं स्वेच्छा से शाकाहारी हूं और मांसाहारी होने की कल्पना भी नहीं कर पाता हूं। मुझे जिन कारणों से शाकाहार बेहतर लगता है, वह निम्न हैं:- १. मैने विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते पढ़ा है कि ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है। पेड़-पौधे फोटो-सिंथेसिस के माध्यम से अपना भोजन बना सकते हैं पर जीव-जंतु नहीं बना सकते। ऐसे में वनस्पति से भोजन प्राप्त कर के हम प्रथम श्रेणी की ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं। २. दुनिया के जिन हिस्सों में वनस्पति कठिनाई से उत्पन्न होती है – विशेषकर रेगिस्तानी इलाकों में, वहां मांसाहार का प्रचलन अधिक होना स्वाभाविक ही है। ३. आयुर्वेद जो मॉडर्न मॅडिसिन की तुलना में कई हज़ार वर्ष पुराना आयुर्विज्ञान है – कहता है कि विद्यार्थी जीवन में सात्विक भोजन करना चाहिये। सात्विक भोजन में रोटी, दाल, सब्ज़ी, दूध, दही आदि आते हैं। गृहस्थ जीवन में राजसिक भोजन उचित है। इसमें गरिष्ठ पदार्थ – पूड़ी, कचौड़ी, मिष्ठान्न, छप्पन भोग आदि आते हैं। सैनिकों के लिये तामसिक भोजन की अनुमति दी गई है। मांसाहार को तामसिक भोजन में शामिल किया गया है। राजसिक भोजन यदि बासी हो गया हो तो वह भी तामसिक प्रभाव वाला हो जाता है, ऐसा आयुर्वेद का कथन है। भोजन के इस वर्गीकरण का आधार यह बताया गया है कि हर प्रकार के भोजन से हमारे भीतर अलग – अलग प्रकार की मनोवृत्ति जन्म लेती है। जिस व्यक्ति को मुख्यतः बौद्धिक कार्य करना है, उसके लिये सात्विक भोजन सर्वश्रेष्ठ है। सैनिक को मुख्यतः कठोर जीवन जीना है और बॉस के आदेशों का पालन करना होता है। यदि 'फायर' कह दिया तो फयर करना है, अपनी विवेक बुद्धि से, उचित अनुचित के फेर में नहीं पड़ना है। ऐसी मनोवृत्ति तामसिक भोजन से पनपती है, ऐसा आयुर्वेद का मत है। यदि आप कहना चाहें कि इस वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तो मैं यही कह सकता हूं कि बेचारी मॉडर्न मॅडिसिन अभी प्रोटीन – कार्बोहाइड्रेट – वसा से आगे नहीं बढ़ी है। जिस दिन भोजन व मानसिकता का अन्तर्सम्बन्ध जानने का प्रयास करेगी, इस तथ्य को ऐसे ही समझ जायेगी जैसे आयुर्वेद व योग के अन्य सिद्धान्तों को समझती जा रही है। तब तक आप चाहे तो प्रतीक्षा कर लें, चाहे तो आयुर्वेद के सिद्धान्तों की खिल्ली भी उड़ा सकते हैं। जब हम मांसाहार लेते हैं तो वास्तव में पशुओं में कंसंट्रेटेड फॉर्म में मौजूद वानस्पतिक ऊर्जा को ही प्राप्त करते हैं क्योंकि इन पशुओं में भी तो भोजन वनस्पतियों से ही आया है। हां, इतना अवश्य है कि पशुओं के शरीर से प्राप्त होने वाली वानस्पतिक ऊर्जा सेकेंड हैंड ऊर्जा है। यदि आप मांसाहारी पशुओं को खाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं तो आप थर्ड हैंड ऊर्जा पाने की चेष्टा करते हैं। वनस्पति से शाकाहारी पशु में, शाकाहारी पशु से मांसाहारी पशु में और फिर मांसाहारी पशु से आप में ऊर्जा पहुंचती है। हो सकता है कि कुछ लोग गिद्ध, बाज, गरुड़ आदि को खाकर ऊर्जा प्राप्त करना चाहें। जैसी उनकी इच्छा ! वे पूर्ण स्वतंत्र हैं।
>दूसरा भाग ………. एक तर्क यह दिया गया है कि पेड़-पौधों को भी कष्ट होता है। ऐसे में पशुओं को कष्ट पहुंचाने की बात स्वयमेव निरस्त हो जाती है। इस बारे में विनम्र निवेदन है कि हम पेड़ से फल तोड़ते हैं तो पेड़ की हत्या नहीं कर देते। फल तोड़ने के बाद भी पेड़ स्वस्थ है, प्राणवान है, और फल देता रहेगा। आप गाय, भैंस, बकरी का दूध दुहते हैं तो ये पशु न तो मर जाते हैं और न ही दूध दुहने से बीमार हो जाते हैं। दूध को तो प्रकृति ने बनाया ही भोजन के रूप में है। पर अगर हम किसी पशु के जीवन का अन्त कर देते हैं तो अनेकों धर्मों में इसको बुरा माना गया है। आप इससे सहमत हों या न हों, आपकी मर्ज़ी। चिकित्सा वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि प्रत्येक शरीर जीवित कोशिकाओं से मिल कर बनता है और शरीर में जब भोजन पहुंचता है तो ये सब कोशिकायें अपना-अपना भोजन प्राप्त करती हैं व मल त्याग करती हैं। यह मल एक निश्चित अंतराल पर शरीर बाहर फेंकता रहता है। यदि किसी जीव की हत्या कर दी जाये तो उसके शरीर की कोशिकायें मृत शरीर में मौजूद नौरिश्मेंट को प्राप्त करके यथासंभव जीवित रहने का प्रयास करती रहती हैं। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे किसी बंद कमरे में पांच-सात व्यक्ति ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण मर जायें तो उस कमरे में ऑक्सीजन का प्रतिशत शून्य मिलेगा। जितनी भी ऑक्सीजन कमरे में थी, उस सब का उपभोग हो जाने के बाद ही, एक-एक व्यक्ति मरना शुरु होगा। इसी प्रकार शरीर से काट कर अलग कर दिये गये अंग में जितना भी नौरिश्मेंट मौजूद होगा, वह सब कोशिकायें प्राप्त करती रहेंगि और जब सिर्फ मल ही शेष बच रहेगा तो कोशिकायें धीरे धीरे मरती चली जायेंगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि मृत पशु से नौरिश्मेंट पाने के प्रयास में हम वास्तव में मल खा रहे होते हैं। हो सकता है, यह बात कुछ लोगों को अरुचिकर लगे। मैं उन सब से हाथ जोड़ कर क्षमाप्रार्थना करता हूं। पर जो बायोलोजिकल तथ्य हैं, वही बयान कर रहा हूं। भारत जैसे देश में, जहां मानव के लिये भी स्वास्थ्य-सेवायें व स्वास्थ्यकर, पोषक भोजन दुर्लभ हैं, पशुओं के स्वास्थ्य की, उनके लिये पोषक व स्वास्थ्यकर भोजन की चिन्ता कौन करेगा? घोर अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहते हुए, जहां जो भी, जैसा भी, सड़ा-गला मिल गया, खाकर बेचारे पशु अपना पेट पालते हैं। उनमें से अधिकांश घनघोर बीमारियों से ग्रस्त हैं। ऐसे बीमार पशुओं को भोजन के रूप में प्रयोग करने की तो कल्पना भी मुझे कंपकंपी उत्पन्न कर देती है। यदि आप फिर भी उनको भोजन के रूप में बड़े चाव से देख पाते हैं तो ऐसा भोजन आपको मुबारक। हम तो पेड़ – पौधों पर छिड़के जाने वाले कीटनाशकों से ही निबट लें तो ही खैर मना लेंगे । उक्त विवेचन में यदि किसी भी व्यक्ति को कुछ अरुचिकर अनुभव हुआ हो तो मुझे हार्दिक खेद है। सुशान्त सिंहल http://www.sushantsinghal.blogspot.com
>सुशांत जी से साभार …………….पहला भाग मांसाहार या शाकाहार ! बहस बहुत उपयोगी है और मनोरंजक भी ! मैं स्वयं पूर्णतः शाकाहारी हूं पर मेरे विचार में मैं शाकाहारी इसलिये हूं क्योंकि मेरा जन्म एक शाकाहारी माता-पिता के घर में हुआ और मुझे बचपन से यह संस्कार मिले कि शाकाहार मांसाहार की तुलना में बेहतर है। आज मैं स्वेच्छा से शाकाहारी हूं और मांसाहारी होने की कल्पना भी नहीं कर पाता हूं। मुझे जिन कारणों से शाकाहार बेहतर लगता है, वह निम्न हैं:- १. मैने विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते पढ़ा है कि ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है। पेड़-पौधे फोटो-सिंथेसिस के माध्यम से अपना भोजन बना सकते हैं पर जीव-जंतु नहीं बना सकते। ऐसे में वनस्पति से भोजन प्राप्त कर के हम प्रथम श्रेणी की ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं। २. दुनिया के जिन हिस्सों में वनस्पति कठिनाई से उत्पन्न होती है – विशेषकर रेगिस्तानी इलाकों में, वहां मांसाहार का प्रचलन अधिक होना स्वाभाविक ही है। ३. आयुर्वेद जो मॉडर्न मॅडिसिन की तुलना में कई हज़ार वर्ष पुराना आयुर्विज्ञान है – कहता है कि विद्यार्थी जीवन में सात्विक भोजन करना चाहिये। सात्विक भोजन में रोटी, दाल, सब्ज़ी, दूध, दही आदि आते हैं। गृहस्थ जीवन में राजसिक भोजन उचित है। इसमें गरिष्ठ पदार्थ – पूड़ी, कचौड़ी, मिष्ठान्न, छप्पन भोग आदि आते हैं। सैनिकों के लिये तामसिक भोजन की अनुमति दी गई है। मांसाहार को तामसिक भोजन में शामिल किया गया है। राजसिक भोजन यदि बासी हो गया हो तो वह भी तामसिक प्रभाव वाला हो जाता है, ऐसा आयुर्वेद का कथन है। भोजन के इस वर्गीकरण का आधार यह बताया गया है कि हर प्रकार के भोजन से हमारे भीतर अलग – अलग प्रकार की मनोवृत्ति जन्म लेती है। जिस व्यक्ति को मुख्यतः बौद्धिक कार्य करना है, उसके लिये सात्विक भोजन सर्वश्रेष्ठ है। सैनिक को मुख्यतः कठोर जीवन जीना है और बॉस के आदेशों का पालन करना होता है। यदि 'फायर' कह दिया तो फयर करना है, अपनी विवेक बुद्धि से, उचित अनुचित के फेर में नहीं पड़ना है। ऐसी मनोवृत्ति तामसिक भोजन से पनपती है, ऐसा आयुर्वेद का मत है। यदि आप कहना चाहें कि इस वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तो मैं यही कह सकता हूं कि बेचारी मॉडर्न मॅडिसिन अभी प्रोटीन – कार्बोहाइड्रेट – वसा से आगे नहीं बढ़ी है। जिस दिन भोजन व मानसिकता का अन्तर्सम्बन्ध जानने का प्रयास करेगी, इस तथ्य को ऐसे ही समझ जायेगी जैसे आयुर्वेद व योग के अन्य सिद्धान्तों को समझती जा रही है। तब तक आप चाहे तो प्रतीक्षा कर लें, चाहे तो आयुर्वेद के सिद्धान्तों की खिल्ली भी उड़ा सकते हैं। जब हम मांसाहार लेते हैं तो वास्तव में पशुओं में कंसंट्रेटेड फॉर्म में मौजूद वानस्पतिक ऊर्जा को ही प्राप्त करते हैं क्योंकि इन पशुओं में भी तो भोजन वनस्पतियों से ही आया है। हां, इतना अवश्य है कि पशुओं के शरीर से प्राप्त होने वाली वानस्पतिक ऊर्जा सेकेंड हैंड ऊर्जा है। यदि आप मांसाहारी पशुओं को खाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं तो आप थर्ड हैंड ऊर्जा पाने की चेष्टा करते हैं। वनस्पति से शाकाहारी पशु में, शाकाहारी पशु से मांसाहारी पशु में और फिर मांसाहारी पशु से आप में ऊर्जा पहुंचती है। हो सकता है कि कुछ लोग गिद्ध, बाज, गरुड़ आदि को खाकर ऊर्जा प्राप्त करना चाहें। जैसी उनकी इच्छा ! वे पूर्ण स्वतंत्र हैं।
>दूसरा भाग ………. एक तर्क यह दिया गया है कि पेड़-पौधों को भी कष्ट होता है। ऐसे में पशुओं को कष्ट पहुंचाने की बात स्वयमेव निरस्त हो जाती है। इस बारे में विनम्र निवेदन है कि हम पेड़ से फल तोड़ते हैं तो पेड़ की हत्या नहीं कर देते। फल तोड़ने के बाद भी पेड़ स्वस्थ है, प्राणवान है, और फल देता रहेगा। आप गाय, भैंस, बकरी का दूध दुहते हैं तो ये पशु न तो मर जाते हैं और न ही दूध दुहने से बीमार हो जाते हैं। दूध को तो प्रकृति ने बनाया ही भोजन के रूप में है। पर अगर हम किसी पशु के जीवन का अन्त कर देते हैं तो अनेकों धर्मों में इसको बुरा माना गया है। आप इससे सहमत हों या न हों, आपकी मर्ज़ी। चिकित्सा वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि प्रत्येक शरीर जीवित कोशिकाओं से मिल कर बनता है और शरीर में जब भोजन पहुंचता है तो ये सब कोशिकायें अपना-अपना भोजन प्राप्त करती हैं व मल त्याग करती हैं। यह मल एक निश्चित अंतराल पर शरीर बाहर फेंकता रहता है। यदि किसी जीव की हत्या कर दी जाये तो उसके शरीर की कोशिकायें मृत शरीर में मौजूद नौरिश्मेंट को प्राप्त करके यथासंभव जीवित रहने का प्रयास करती रहती हैं। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे किसी बंद कमरे में पांच-सात व्यक्ति ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण मर जायें तो उस कमरे में ऑक्सीजन का प्रतिशत शून्य मिलेगा। जितनी भी ऑक्सीजन कमरे में थी, उस सब का उपभोग हो जाने के बाद ही, एक-एक व्यक्ति मरना शुरु होगा। इसी प्रकार शरीर से काट कर अलग कर दिये गये अंग में जितना भी नौरिश्मेंट मौजूद होगा, वह सब कोशिकायें प्राप्त करती रहेंगि और जब सिर्फ मल ही शेष बच रहेगा तो कोशिकायें धीरे धीरे मरती चली जायेंगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि मृत पशु से नौरिश्मेंट पाने के प्रयास में हम वास्तव में मल खा रहे होते हैं। हो सकता है, यह बात कुछ लोगों को अरुचिकर लगे। मैं उन सब से हाथ जोड़ कर क्षमाप्रार्थना करता हूं। पर जो बायोलोजिकल तथ्य हैं, वही बयान कर रहा हूं। भारत जैसे देश में, जहां मानव के लिये भी स्वास्थ्य-सेवायें व स्वास्थ्यकर, पोषक भोजन दुर्लभ हैं, पशुओं के स्वास्थ्य की, उनके लिये पोषक व स्वास्थ्यकर भोजन की चिन्ता कौन करेगा? घोर अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहते हुए, जहां जो भी, जैसा भी, सड़ा-गला मिल गया, खाकर बेचारे पशु अपना पेट पालते हैं। उनमें से अधिकांश घनघोर बीमारियों से ग्रस्त हैं। ऐसे बीमार पशुओं को भोजन के रूप में प्रयोग करने की तो कल्पना भी मुझे कंपकंपी उत्पन्न कर देती है। यदि आप फिर भी उनको भोजन के रूप में बड़े चाव से देख पाते हैं तो ऐसा भोजन आपको मुबारक। हम तो पेड़ – पौधों पर छिड़के जाने वाले कीटनाशकों से ही निबट लें तो ही खैर मना लेंगे । उक्त विवेचन में यदि किसी भी व्यक्ति को कुछ अरुचिकर अनुभव हुआ हो तो मुझे हार्दिक खेद है। सुशान्त सिंहल http://www.sushantsinghal.blogspot.com
>यदि हमारे दांत मांस खाने में सक्षम हैं तो कम से कम हम शाक-सब्जी तो खा ही सकते हैं. तो सलीम जी, जरा कटहल, सीताफल, घीया, करेला, फलीयां इनको कच्चा खा के बताओ.भाषण देने में तुम एक नम्बर हो.तुम राखी सांवत की तरह ही मजे ले रहो हो. तुम्हें पता है कि तुम गलत हो लेकिन प्रसिद्धी तो मिल ही रही है चाहे गलत बातों से ही क्यों ना हो.कोई लिख गया, कह गया बस तुम लकीर के फकीर बने रहो. चुहा, काक्रोच, छिपकली, गिरगिट क्यों नहीं खालेते तुम.
>यदि हमारे दांत मांस खाने में सक्षम हैं तो कम से कम हम शाक-सब्जी तो खा ही सकते हैं. तो सलीम जी, जरा कटहल, सीताफल, घीया, करेला, फलीयां इनको कच्चा खा के बताओ.भाषण देने में तुम एक नम्बर हो.तुम राखी सांवत की तरह ही मजे ले रहो हो. तुम्हें पता है कि तुम गलत हो लेकिन प्रसिद्धी तो मिल ही रही है चाहे गलत बातों से ही क्यों ना हो.कोई लिख गया, कह गया बस तुम लकीर के फकीर बने रहो. चुहा, काक्रोच, छिपकली, गिरगिट क्यों नहीं खालेते तुम.
>सलीम खान जी हिन्दू धर्म की व्याख्या जो है वो कोई मूढ़ – मति नहीं समझ सकता , और आप से और कैरानवी से ये उम्मीद तो हमें बिलकुल भी नहीं है |अनुनाद जी ने वैसे आप को समझाने के लिए तो लिखा ही नहीं है , वो सम्यक ज्ञानी लोगों से बहस वार्ता की जा रही है |अतः पंगा न लो ||
>सलीम खान जी हिन्दू धर्म की व्याख्या जो है वो कोई मूढ़ – मति नहीं समझ सकता , और आप से और कैरानवी से ये उम्मीद तो हमें बिलकुल भी नहीं है |अनुनाद जी ने वैसे आप को समझाने के लिए तो लिखा ही नहीं है , वो सम्यक ज्ञानी लोगों से बहस वार्ता की जा रही है |अतः पंगा न लो ||
>महानुभवों में लालटेन लेके कहाँ कहाँ ढूंडता हूँ जब भी मिलते हो यहीं मिलते हो, अरे भाईयों Rank-0 जीरो janokti.blogspot.com पर सवाल जवाब की दुकान तुम्हारे घर में लगाये बैठा हूँ और आप हो कि सलीम खान को बच्चा समझ के चाहे जब घेर लेते हो, आजाओ बहुतों को और मैंने निमन्तरण दिया हुआ है, please visit:http://janokti.blogspot.com/2009/07/blog-post_1543.htmlफिर भी यहीं जमे हो तो मेरे एक सवाल का जवाब दो, कभी कुरआन का मुखडा देखा है, नहीं ना इसी लिये उसका नाम तक नहीं सही लिख सकते अरे कैसे ज्ञानी हो जिसकी बात करो उसका सही नाम तो लिखो आपस में मशवरा कर लो और यकीन ना हो तो नाहर जी से पूछ लेना उन्होंने कुरआन शब्द कैसे दिया है, यहीं विजेट में झांक लो कैसे लिखा है, ठीक से लिखा करो अन्यथा सारे नेट जगत में रूक्का तार दूंगा कि कैसे ज्ञानी लोग आगे कर रखे हैं इन्हें पीछे करो और पढे लिखे आगे आओ, सलीम साहब ने ठीक कहा हम वेदों पुराणों की बुराई नहीं कर सकते कियूंकि हमें कुरआन में रोका गया है और कहा गया है कि अगर तुम दूसरों के झूठे खुदा की बुराई करोगे तो वह तुम्हारे सच्चे खुदा की बुराई करेगा, कितना ही गुस्सा दिलालो हम आपके धर्म ग्रंथों की बुराई नहीं करेंगे, यही कारण है कोई मुसलमान किसी भी धर्म के ग्रंथ को बुरा नहीं कहता, आप जैसों की तरहमांस पे तो बात की नहीं अरे सलीम भाई अब मांसाहार की तरफ मत लाओ मुर्गी फारम चारों तरफ यूंही नहीं बढ रहे, इन कुछ लोगों को दाल खाने दो मेरी नजर में तो सब खाते हैं वर्ना मैं कह देता मुहावरा 'बन्दर किया जाने अदरक का स्वाद'एक लाभ मैं गरीबों के लिये बतादूं कि एक यही रोटी से खाने वाली चीज है जो थोडी सी हो और चाहे जितना पानी डाल लो और कुनबा पाल लो, दाल में पानी हमने आजमा रखा बेकार हो जाती है, आप लोग जानते हों तो बताआ गरीबों का भला हो जायेगा,अच्छा काफी देर हो रही है पहुचो 'सच बोलना मना है' अर्थात janokti पर झूठ बोलने,मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्त छ अल्लाह के चैलेंज islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
>महानुभवों में लालटेन लेके कहाँ कहाँ ढूंडता हूँ जब भी मिलते हो यहीं मिलते हो, अरे भाईयों Rank-0 जीरो janokti.blogspot.com पर सवाल जवाब की दुकान तुम्हारे घर में लगाये बैठा हूँ और आप हो कि सलीम खान को बच्चा समझ के चाहे जब घेर लेते हो, आजाओ बहुतों को और मैंने निमन्तरण दिया हुआ है, please visit:http://janokti.blogspot.com/2009/07/blog-post_1543.htmlफिर भी यहीं जमे हो तो मेरे एक सवाल का जवाब दो, कभी कुरआन का मुखडा देखा है, नहीं ना इसी लिये उसका नाम तक नहीं सही लिख सकते अरे कैसे ज्ञानी हो जिसकी बात करो उसका सही नाम तो लिखो आपस में मशवरा कर लो और यकीन ना हो तो नाहर जी से पूछ लेना उन्होंने कुरआन शब्द कैसे दिया है, यहीं विजेट में झांक लो कैसे लिखा है, ठीक से लिखा करो अन्यथा सारे नेट जगत में रूक्का तार दूंगा कि कैसे ज्ञानी लोग आगे कर रखे हैं इन्हें पीछे करो और पढे लिखे आगे आओ, सलीम साहब ने ठीक कहा हम वेदों पुराणों की बुराई नहीं कर सकते कियूंकि हमें कुरआन में रोका गया है और कहा गया है कि अगर तुम दूसरों के झूठे खुदा की बुराई करोगे तो वह तुम्हारे सच्चे खुदा की बुराई करेगा, कितना ही गुस्सा दिलालो हम आपके धर्म ग्रंथों की बुराई नहीं करेंगे, यही कारण है कोई मुसलमान किसी भी धर्म के ग्रंथ को बुरा नहीं कहता, आप जैसों की तरहमांस पे तो बात की नहीं अरे सलीम भाई अब मांसाहार की तरफ मत लाओ मुर्गी फारम चारों तरफ यूंही नहीं बढ रहे, इन कुछ लोगों को दाल खाने दो मेरी नजर में तो सब खाते हैं वर्ना मैं कह देता मुहावरा 'बन्दर किया जाने अदरक का स्वाद'एक लाभ मैं गरीबों के लिये बतादूं कि एक यही रोटी से खाने वाली चीज है जो थोडी सी हो और चाहे जितना पानी डाल लो और कुनबा पाल लो, दाल में पानी हमने आजमा रखा बेकार हो जाती है, आप लोग जानते हों तो बताआ गरीबों का भला हो जायेगा,अच्छा काफी देर हो रही है पहुचो 'सच बोलना मना है' अर्थात janokti पर झूठ बोलने,मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्त छ अल्लाह के चैलेंज islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
>भाई आखिर एक गड्ढे की ही गंदगी में पानी डाल – डाल कर सूअरों का पूरा कुनबा भी पल जाता है , ये कै+रानवी ( जिनके तर्कों से कै हो जाये ) भी मुर्गी खिलाकर अपना कुनबा पाल ही लेगा |भगवान् इसे सद्बुद्धि दे |( भगवान् ने कहा खबरदार कुपात्र को तो भिक्षा भी नहीं दी जाती और बुद्धि तो नायाब है इसे क्यों दूँ ) |सर्वसम्मति से मानी रैंकिंग ……………………………………ध्यान दें ||कुरानी बकवासों का मामला -कैरानवी Rank – 2निहायत ही घटिया अवतारवादी तर्क का मामला -कैरानवी Rank – 1जल्दी पहुचें कोई और आगे न निकल जाये ||
>भाई आखिर एक गड्ढे की ही गंदगी में पानी डाल – डाल कर सूअरों का पूरा कुनबा भी पल जाता है , ये कै+रानवी ( जिनके तर्कों से कै हो जाये ) भी मुर्गी खिलाकर अपना कुनबा पाल ही लेगा |भगवान् इसे सद्बुद्धि दे |( भगवान् ने कहा खबरदार कुपात्र को तो भिक्षा भी नहीं दी जाती और बुद्धि तो नायाब है इसे क्यों दूँ ) |सर्वसम्मति से मानी रैंकिंग ……………………………………ध्यान दें ||कुरानी बकवासों का मामला -कैरानवी Rank – 2निहायत ही घटिया अवतारवादी तर्क का मामला -कैरानवी Rank – 1जल्दी पहुचें कोई और आगे न निकल जाये ||
>@विवेक रस्तोगी जी, आपने लिखा:"अरे भाई हम तो केवल वही खा सकते हैं जिसे कि कच्चा भी खाया जा सके जितनी भी शाकाहारी चीजें है उन्हें कच्चा खाया जा सकता है और मांसाहार में नहीं, उसमें तो केवल मसाले का स्वाद होता है, क्या कच्चे मांस में कोई स्वाद होता है या खा सकते हैं?"(हालाँकि मेरा लेख लिखने का मकसद यह नहीं था कि आप मांस ज़रूर खाओ, मैंने यह भी लिखा एक मुसलमान सच्चा मुसलमान हो सकता है. बिना मांस खाए) आपके मुताबिक जिसे कच्चा खाया जा सके (आपके अनुसार शाकाहार) आप वही खाते हैं, वरना नहीं. अर्थात आप केवल वही खाते है जिसे कच्चा खाया जाये!आप चाय तो ज़रूर पीते होंगे ? क्या आप चाय-पत्ती कच्ची खा सकते हैं?आप सभी प्रकार की दालें, कटहल, सीताफल, घीया, करेला, फलीयां (स्नेह जी ने स्वयं लिखा है) को कच्चा खा सकते हैं?नहीं ना!!!??? देखिये बात को यूँ ही कह देना (सिर्फ इसलिए कि आप उसे तर्क की संज्ञा दें और केवल बातों को ही जीतने की कोशिश करें) सही नहीं है. सत्य यही है कि मांस खाने में कोई दिक्कत नहीं है. यही वजह है कि दुनिया में किसी भी मेजर रिलिजन ने इसे अवैध नहीं ठहराया है, फिर चाहे वह हिन्दू धर्म हो, इस्लाम धर्म हो, ईसाई धर्म हो और ना ही दुनिया के किसी एक भी देश ने मांसाहार को अवैध ठहराया हो या उस पर रोक लगी हो, और ना ही किसी भी चिकित्सा जगत की किसी भी किताब ने इसे गलत बताया हो, यहाँ तक कि आयुर्वेद में भी.भाई विवेक, आप अपने विवेक का इस्तेमाल कर उपरलिखित चंद किताबों का अध्ययन कर लें, केवल भावावेश में आकर यूँ ही कह देना कहाँ का उचित है, देखिये मैं जो भी बात कहता हूँ हवाले के साथ कहता हूँ.कि फलां चीज़ फलां किताब में लिखा है. आप स्वयं पढ़ लें.मेरा मकसद बस इतना बताना है कि मांसाहार भी जायज़ है जिस तरह शाकाहार.
>@विवेक रस्तोगी जी, आपने लिखा:"अरे भाई हम तो केवल वही खा सकते हैं जिसे कि कच्चा भी खाया जा सके जितनी भी शाकाहारी चीजें है उन्हें कच्चा खाया जा सकता है और मांसाहार में नहीं, उसमें तो केवल मसाले का स्वाद होता है, क्या कच्चे मांस में कोई स्वाद होता है या खा सकते हैं?"(हालाँकि मेरा लेख लिखने का मकसद यह नहीं था कि आप मांस ज़रूर खाओ, मैंने यह भी लिखा एक मुसलमान सच्चा मुसलमान हो सकता है. बिना मांस खाए) आपके मुताबिक जिसे कच्चा खाया जा सके (आपके अनुसार शाकाहार) आप वही खाते हैं, वरना नहीं. अर्थात आप केवल वही खाते है जिसे कच्चा खाया जाये!आप चाय तो ज़रूर पीते होंगे ? क्या आप चाय-पत्ती कच्ची खा सकते हैं?आप सभी प्रकार की दालें, कटहल, सीताफल, घीया, करेला, फलीयां (स्नेह जी ने स्वयं लिखा है) को कच्चा खा सकते हैं?नहीं ना!!!??? देखिये बात को यूँ ही कह देना (सिर्फ इसलिए कि आप उसे तर्क की संज्ञा दें और केवल बातों को ही जीतने की कोशिश करें) सही नहीं है. सत्य यही है कि मांस खाने में कोई दिक्कत नहीं है. यही वजह है कि दुनिया में किसी भी मेजर रिलिजन ने इसे अवैध नहीं ठहराया है, फिर चाहे वह हिन्दू धर्म हो, इस्लाम धर्म हो, ईसाई धर्म हो और ना ही दुनिया के किसी एक भी देश ने मांसाहार को अवैध ठहराया हो या उस पर रोक लगी हो, और ना ही किसी भी चिकित्सा जगत की किसी भी किताब ने इसे गलत बताया हो, यहाँ तक कि आयुर्वेद में भी.भाई विवेक, आप अपने विवेक का इस्तेमाल कर उपरलिखित चंद किताबों का अध्ययन कर लें, केवल भावावेश में आकर यूँ ही कह देना कहाँ का उचित है, देखिये मैं जो भी बात कहता हूँ हवाले के साथ कहता हूँ.कि फलां चीज़ फलां किताब में लिखा है. आप स्वयं पढ़ लें.मेरा मकसद बस इतना बताना है कि मांसाहार भी जायज़ है जिस तरह शाकाहार.
>@रजनीश परिहार जी, वन्दे-ईश्वरम ! आपने लिखा :"आप चाहे जितने तर्क दे दे ..लेकिन सचाई यही है की मानव शरीर मांसाहार के लिए अनुकूल नहीं है …!मानव को bahgvaan ne…शाकाहारी बनाया है और यही सच्चाई है.."ये तो वही बात हुई कि एक कक्षा में अध्यापक किसी विद्यार्थी के लिए उसे पढने के लिए कितना ही ज़ोर क्यूँ न लगा दे, कितना ही क्यूँ न समझा ले आप तो बस यही कहेंगे कि अध्यापक महोदय आप चाहे जितनी कोशिश कर ले, मैं न पधान चाहता हूँ और न ही पढूंगा… !!! फिर सवाल नुक्सान किसका ?? आप का ही होगा जनाब!देखिये मेरा काम है सत्य आप तक पहुंचा देना. आगे मानना या ना मानना आपका काम, यह मेरा काम नहीं है. मैंने अपना फ़र्ज़ निभा दिया,जिसका ईश्वर ने अपनी अंतिम पुस्तक अल-कुरआन में हमें आदेश दिया है.अल्लाह कहता है "तुम्हारा फ़र्ज़ है सत्य सन्देश उन तक पहुँचाना, यह मेरा काम है उसे हिदायत दूं या न दूं." अर्थात हिदायत देना मेरा काम नहीं वह तो ईश्वर के हाँथ में है.(दूसरी बात आप को यह जानने के लिए कि मानव शरीर मांसाहार के अनुकूल है या नहीं तो आप इसके सम्बन्ध में सम्बंधित किताबों का मुताला 'अध्ययन' करें, प्लीज़)
>@रजनीश परिहार जी, वन्दे-ईश्वरम ! आपने लिखा :"आप चाहे जितने तर्क दे दे ..लेकिन सचाई यही है की मानव शरीर मांसाहार के लिए अनुकूल नहीं है …!मानव को bahgvaan ne…शाकाहारी बनाया है और यही सच्चाई है.."ये तो वही बात हुई कि एक कक्षा में अध्यापक किसी विद्यार्थी के लिए उसे पढने के लिए कितना ही ज़ोर क्यूँ न लगा दे, कितना ही क्यूँ न समझा ले आप तो बस यही कहेंगे कि अध्यापक महोदय आप चाहे जितनी कोशिश कर ले, मैं न पधान चाहता हूँ और न ही पढूंगा… !!! फिर सवाल नुक्सान किसका ?? आप का ही होगा जनाब!देखिये मेरा काम है सत्य आप तक पहुंचा देना. आगे मानना या ना मानना आपका काम, यह मेरा काम नहीं है. मैंने अपना फ़र्ज़ निभा दिया,जिसका ईश्वर ने अपनी अंतिम पुस्तक अल-कुरआन में हमें आदेश दिया है.अल्लाह कहता है "तुम्हारा फ़र्ज़ है सत्य सन्देश उन तक पहुँचाना, यह मेरा काम है उसे हिदायत दूं या न दूं." अर्थात हिदायत देना मेरा काम नहीं वह तो ईश्वर के हाँथ में है.(दूसरी बात आप को यह जानने के लिए कि मानव शरीर मांसाहार के अनुकूल है या नहीं तो आप इसके सम्बन्ध में सम्बंधित किताबों का मुताला 'अध्ययन' करें, प्लीज़)
>@निशांत मिश्र जी, आपका यहाँ आना मेरा सौभाग्य ! आप मेरे अच्छे ब्लॉग मित्रों में से हैं, आपने हमेशा सत्य को जानने की कोशिश की और मैंने जितना हो सकता था आपको बताया भी. लेकिन मुझे अफ़सोस लगा आपकी बातों से कि छह महीने बीतने पर भी आपने उन किताबों को नहीं पढ़ा जिनसे आपको यह आसानी से पता लग सकता था कि क्या सही है और क्या गलत? मैंने आपसे कहा था कि आप कम से कम पांच मिनट ही, रोज़ वेदों का एक पन्ना ही पढ़ लें. पुराणों का अध्ययन ही कर लें. चलिए कोई बात नहीं, अब से शुरू कर दें..वैसे मैं आपको जो जवाब दिए थे उसका लिंक मैं यहाँ क्सारूरी समझता हूँ (यह मैं नहीं कह रहा है, यह पहले से ही सत्य लिखा है किताबों में)http://swachchhsandesh.blogspot.com/2009/03/blog-post.html
>@निशांत मिश्र जी, आपका यहाँ आना मेरा सौभाग्य ! आप मेरे अच्छे ब्लॉग मित्रों में से हैं, आपने हमेशा सत्य को जानने की कोशिश की और मैंने जितना हो सकता था आपको बताया भी. लेकिन मुझे अफ़सोस लगा आपकी बातों से कि छह महीने बीतने पर भी आपने उन किताबों को नहीं पढ़ा जिनसे आपको यह आसानी से पता लग सकता था कि क्या सही है और क्या गलत? मैंने आपसे कहा था कि आप कम से कम पांच मिनट ही, रोज़ वेदों का एक पन्ना ही पढ़ लें. पुराणों का अध्ययन ही कर लें. चलिए कोई बात नहीं, अब से शुरू कर दें..वैसे मैं आपको जो जवाब दिए थे उसका लिंक मैं यहाँ क्सारूरी समझता हूँ (यह मैं नहीं कह रहा है, यह पहले से ही सत्य लिखा है किताबों में)http://swachchhsandesh.blogspot.com/2009/03/blog-post.html
>@वरुण कुमार जयसवाल जी, वन्दे-ईश्वरम! आपने लिखा कि लोगों के दांत आपने चेक किये और उनके दांत उतने ही नुकीले मिले जिनसे कि केवल रोटी ही खाई जा सकती है. (कु)तर्क का जवाब कम से कम तर्क ही दे देता हूँ…फिर लोग मांस खा कैसे पाते है? आप बताये कि जब उनके दांत उतने ही नुकीले मिले जिनसे कि केवल रोटी ही खाई जा सकती है तो फिर लोग मांस खा कैसे पाते है? अब जो मांस खाते हैं वह मनुष्य ही हैं, कोई अन्तरिक्ष के निवासी नहीं…फिर आपने लिखा: "यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें।"फिर (कु)तर्क का जवाब कम से कम तर्क ही दे देता हूँ…यदि यह चेक करना हो कि हमारे केवल शाक (VEG) खाने के लिए ही बने है या नहीं तो हमें गाय का चारा या भूंसा खा कर देखना चाहिए. कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों में ऐसा कोई नहीं जो गाय का चारा या भूंसा खा या चबा सकें. हमारे पास तो बकरियों, भैसों या गायों की तरह सिंग भी नहीं है और न ही जुगाली कर सकने वाला तंत्र ही…फिर आपने लिखा "पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं?"अब मुझे तो बस यही लगता है कि या तो आप बिलकुल भी पढ़े लिखे नहीं है या जानबूझ कर अनजान बन रहे है?पाचन संस्थान का त्रुटी पूर्ण हवाल अगर मैंने दिया है तो आपको यह चैलेन्ज है कि किस चिकित्सा जगत की किताब में लिखा है कि मनुष्य का पाचन तंत्र मांसाहार के अनुकूल नहीं है????जवाब दें???? अगर आप जवाब देंगे तो मैं यहाँ बैठ कर आपको जुबान देता हूँ कि मांस खाना छोड़ दूंगा!!!!!आगे लिखा आपने:"वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई।"आपने यह बात यूँ ही कह दी इसका जवाब है कि आपने जो कहा वह कुतर्क (ILLOGICAL) तो है ही, असत्य भी है…
>@वरुण कुमार जयसवाल जी, वन्दे-ईश्वरम! आपने लिखा कि लोगों के दांत आपने चेक किये और उनके दांत उतने ही नुकीले मिले जिनसे कि केवल रोटी ही खाई जा सकती है. (कु)तर्क का जवाब कम से कम तर्क ही दे देता हूँ…फिर लोग मांस खा कैसे पाते है? आप बताये कि जब उनके दांत उतने ही नुकीले मिले जिनसे कि केवल रोटी ही खाई जा सकती है तो फिर लोग मांस खा कैसे पाते है? अब जो मांस खाते हैं वह मनुष्य ही हैं, कोई अन्तरिक्ष के निवासी नहीं…फिर आपने लिखा: "यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें । कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें। हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें।"फिर (कु)तर्क का जवाब कम से कम तर्क ही दे देता हूँ…यदि यह चेक करना हो कि हमारे केवल शाक (VEG) खाने के लिए ही बने है या नहीं तो हमें गाय का चारा या भूंसा खा कर देखना चाहिए. कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों में ऐसा कोई नहीं जो गाय का चारा या भूंसा खा या चबा सकें. हमारे पास तो बकरियों, भैसों या गायों की तरह सिंग भी नहीं है और न ही जुगाली कर सकने वाला तंत्र ही…फिर आपने लिखा "पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं?"अब मुझे तो बस यही लगता है कि या तो आप बिलकुल भी पढ़े लिखे नहीं है या जानबूझ कर अनजान बन रहे है?पाचन संस्थान का त्रुटी पूर्ण हवाल अगर मैंने दिया है तो आपको यह चैलेन्ज है कि किस चिकित्सा जगत की किताब में लिखा है कि मनुष्य का पाचन तंत्र मांसाहार के अनुकूल नहीं है????जवाब दें???? अगर आप जवाब देंगे तो मैं यहाँ बैठ कर आपको जुबान देता हूँ कि मांस खाना छोड़ दूंगा!!!!!आगे लिखा आपने:"वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें। कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई।"आपने यह बात यूँ ही कह दी इसका जवाब है कि आपने जो कहा वह कुतर्क (ILLOGICAL) तो है ही, असत्य भी है…
>@शरद कोकास जी, वन्दे-ईश्वरम !आपने सही लिखा है कि "जब आदिम मनुष्य का जन्म हुआ था तभी से शाकाहर और माँसाहार चले आ रहे है "
>@शरद कोकास जी, वन्दे-ईश्वरम !आपने सही लिखा है कि "जब आदिम मनुष्य का जन्म हुआ था तभी से शाकाहर और माँसाहार चले आ रहे है "
>@विवेक कुमार जयसवाल जी, वन्दे ईश्वरम…आपने लिखा: "लेकिन शरद जी क्या आपको मालूम नहीं की , जब वो कुरानी बक्वासें लिखी गयी थी तब मिक्सी का अविष्कार नहीं हुआ था , लेकिन इन कम- अकलों को कौन समझाए"देखिये विवेक सर्वप्रथम आप सुशब्दों का आविष्कार करें कुशब्दों का नहीं. हमने तो ऐसा कुछ नहीं लिखा. कुरानी नहीं यह 'कुरआन की' होना चाहिए और रही बात बकवास की तो मैं यहाँ बैठ कर चैलेन्ज देता हूँ कि अगर आप कुरआन में एक भी, एक भी त्रुटी सिद्ध कर दें मैं इस्लाम धर्म छोड़ दूंगा!!
>@विवेक कुमार जयसवाल जी, वन्दे ईश्वरम…आपने लिखा: "लेकिन शरद जी क्या आपको मालूम नहीं की , जब वो कुरानी बक्वासें लिखी गयी थी तब मिक्सी का अविष्कार नहीं हुआ था , लेकिन इन कम- अकलों को कौन समझाए"देखिये विवेक सर्वप्रथम आप सुशब्दों का आविष्कार करें कुशब्दों का नहीं. हमने तो ऐसा कुछ नहीं लिखा. कुरानी नहीं यह 'कुरआन की' होना चाहिए और रही बात बकवास की तो मैं यहाँ बैठ कर चैलेन्ज देता हूँ कि अगर आप कुरआन में एक भी, एक भी त्रुटी सिद्ध कर दें मैं इस्लाम धर्म छोड़ दूंगा!!
>आप अभी तक यह स्पष्त नहीं कर पाये कि कुरान में चार विवाह की अनुमति है या 'केवल' एक विवाह की। आपके विचार पर एक मुस्लिम भाई की आपत्ति भी विचारणीय है।
>आप अभी तक यह स्पष्त नहीं कर पाये कि कुरान में चार विवाह की अनुमति है या 'केवल' एक विवाह की। आपके विचार पर एक मुस्लिम भाई की आपत्ति भी विचारणीय है।
>आप लोगों को मैं एक कहवत सुनाता हूँ,"एक बार पता नहीं क्यूँ यमराज जी को सरदार जी चिढ हो गयी. तब उन्होंने ने सोचा आने दो सरदार के बच्चे को, उसे तो मैं नरक (दोज़ख) में ही डालूँगा.फिर वो दिन आ ही गया सरदार जी की मृत्यु हुई और वह ऊपर गए, उस दिन दो और लोगों की भी मृत्यु हुई जिनमे एक पंडित जी थे और एक मुल्ला जी.अब यमराज जी ने परीक्षा लेनी शुरू कि और बाते कि जो पूछे गए सवालों का जवाब दे लेगा उसे स्वर्ग (जन्नत), और जो जवाब नहीं देगा उसे नरक मिलेगा!फिर सवाल जवाब का सेशन शुरू हुआ…यमराज जी: हाँ तो पंडित जी आप बताईये कि 'कैट' की स्पेलिंग क्या होती है?पंडित जी: जनाब 'CAT'यमराज जी ने कहा : शाबाश तुम जन्नत में जाओगे !फिर उन्होंने मुल्ला जी से पूछा : हाँ तो मुल्ला जी, आप बताये कि 'डॉग' की स्पेलिंग क्या होती है?मुल्ला जी: जनाब 'DOG'शाबाश तुम भी जन्नत में जाओगे, यमराज ने खुश होते हुए कहा.अब उन्होंने सरदार जी की तरफ कुटिल मुस्कान से देखा और पूछा: सरदार जी आप "चिकोस्लोवाकिया' की स्पेलिंग बताएं?सरदार जी नहीं बता सके. यमराज जी ने कहा, सरदार जी, आप दोज़ख में जाओगे! सरदार जी को इस तरह की कठिन स्पेलिंग की उम्मीद नहीं थी. वे बिफ़र गए और कहने लगे कि यह तो चीटिंग है. उन लोगों से आपने इतनी सरल स्पेलिंग पूछी और मुझसे इतनी कठिन कि शायेद आप भी नहीं जानते होंगे.यमराज जी ने कहा अगर सरदार जी तुम्हें लगता है कि अन्याय हुआ है पुनः परीक्षा ले लेता हैं.अब…यमराज जी: हाँ तो पंडित जी आप 2 का पहाडा सुनाएँ?पंडित जी ने सुना दिया : दो एक्कम दो, दो दुन्नी चार, दो तियां……. दहम्मे बीस' यमराज जी ने कहा : शाबाश तुम जन्नत में जाओगे !फिर उन्होंने मुल्ला जी से पूछा : हाँ तो मुल्ला जी, आप 3 का पहाडा सुनाएँ?मुल्ला जी ने भी पहाडा सुना दिया.शाबाश तुम भी जन्नत में जाओगे, यमराज ने खुश होते हुए कहा.अब उन्होंने सरदार जी की तरफ कुटिल मुस्कान से देखा और पूछा: सरदार जी आप आप '19' का पहाडा सुनाएँ?सरदार जी नहीं सुना सके. यमराज जी ने कहा, सरदार जी, आप दोज़ख में जाओगे!तो मेरा आप सभी ब्लोगर्स से यह कहना है कि आप यमराज प्रवृत्ति न लें बल्कि सत्य क्या है अथवा नियम क्या है, के तहत अपनी सुबुद्धि का इस्तेमाल कर सत्य का मार्ग अपनाएं.
>आप लोगों को मैं एक कहवत सुनाता हूँ,"एक बार पता नहीं क्यूँ यमराज जी को सरदार जी चिढ हो गयी. तब उन्होंने ने सोचा आने दो सरदार के बच्चे को, उसे तो मैं नरक (दोज़ख) में ही डालूँगा.फिर वो दिन आ ही गया सरदार जी की मृत्यु हुई और वह ऊपर गए, उस दिन दो और लोगों की भी मृत्यु हुई जिनमे एक पंडित जी थे और एक मुल्ला जी.अब यमराज जी ने परीक्षा लेनी शुरू कि और बाते कि जो पूछे गए सवालों का जवाब दे लेगा उसे स्वर्ग (जन्नत), और जो जवाब नहीं देगा उसे नरक मिलेगा!फिर सवाल जवाब का सेशन शुरू हुआ…यमराज जी: हाँ तो पंडित जी आप बताईये कि 'कैट' की स्पेलिंग क्या होती है?पंडित जी: जनाब 'CAT'यमराज जी ने कहा : शाबाश तुम जन्नत में जाओगे !फिर उन्होंने मुल्ला जी से पूछा : हाँ तो मुल्ला जी, आप बताये कि 'डॉग' की स्पेलिंग क्या होती है?मुल्ला जी: जनाब 'DOG'शाबाश तुम भी जन्नत में जाओगे, यमराज ने खुश होते हुए कहा.अब उन्होंने सरदार जी की तरफ कुटिल मुस्कान से देखा और पूछा: सरदार जी आप "चिकोस्लोवाकिया' की स्पेलिंग बताएं?सरदार जी नहीं बता सके. यमराज जी ने कहा, सरदार जी, आप दोज़ख में जाओगे! सरदार जी को इस तरह की कठिन स्पेलिंग की उम्मीद नहीं थी. वे बिफ़र गए और कहने लगे कि यह तो चीटिंग है. उन लोगों से आपने इतनी सरल स्पेलिंग पूछी और मुझसे इतनी कठिन कि शायेद आप भी नहीं जानते होंगे.यमराज जी ने कहा अगर सरदार जी तुम्हें लगता है कि अन्याय हुआ है पुनः परीक्षा ले लेता हैं.अब…यमराज जी: हाँ तो पंडित जी आप 2 का पहाडा सुनाएँ?पंडित जी ने सुना दिया : दो एक्कम दो, दो दुन्नी चार, दो तियां……. दहम्मे बीस' यमराज जी ने कहा : शाबाश तुम जन्नत में जाओगे !फिर उन्होंने मुल्ला जी से पूछा : हाँ तो मुल्ला जी, आप 3 का पहाडा सुनाएँ?मुल्ला जी ने भी पहाडा सुना दिया.शाबाश तुम भी जन्नत में जाओगे, यमराज ने खुश होते हुए कहा.अब उन्होंने सरदार जी की तरफ कुटिल मुस्कान से देखा और पूछा: सरदार जी आप आप '19' का पहाडा सुनाएँ?सरदार जी नहीं सुना सके. यमराज जी ने कहा, सरदार जी, आप दोज़ख में जाओगे!तो मेरा आप सभी ब्लोगर्स से यह कहना है कि आप यमराज प्रवृत्ति न लें बल्कि सत्य क्या है अथवा नियम क्या है, के तहत अपनी सुबुद्धि का इस्तेमाल कर सत्य का मार्ग अपनाएं.
>@अनुनाद सिंह जी, वन्दे-ईश्वरम!कुरआन में लिखा है"और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथ लड़कियों के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो, या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो.किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकोगे, तो फिर एक ही बस करो (MARRY ONLY ONE), या उस स्त्री पर जो तुम्हारे कब्जे (निकाह) में आई हो, उसी पर बस (MARRY ONLY ONE). इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक संभावना है (अर्थात तुम न्याय पर रहने की संभावना अधिक है)"इसका मतलब यह है कि कुरआन में चार शादी की अनुमति है आदेश नहीं.
>@अनुनाद सिंह जी, वन्दे-ईश्वरम!कुरआन में लिखा है"और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथ लड़कियों के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो, या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो.किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकोगे, तो फिर एक ही बस करो (MARRY ONLY ONE), या उस स्त्री पर जो तुम्हारे कब्जे (निकाह) में आई हो, उसी पर बस (MARRY ONLY ONE). इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक संभावना है (अर्थात तुम न्याय पर रहने की संभावना अधिक है)"इसका मतलब यह है कि कुरआन में चार शादी की अनुमति है आदेश नहीं.
>सलीम खान जी पहली बात तो यह कि सम्बंधित लेख श्री सुशांत सिंघल जी से साभार लेकर आपके कुतर्कों का जवाब दिया |मैंने स्वयं नहीं लिखा है ,चलिए अब आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि मैं भी जीव – विज्ञान का छात्र रह चुका हूँ , कृपया अब इन तर्कों की कसौटी पर अपने लेख को परखिये |१. किसी भी शाकाहारी जीव की श्वसन प्रक्रिया मांसाहारी की तुलना में धीमी होती है ( जैसे कि मनुष्य में ) गाय , बकरी , हिरन , खरगोश, भैंसे इत्यादि सभी धीमे – धीमे से सांस लेते है , जबकि शेर , कुत्ते , विड़ाल इत्यादि हाँफते हुए तो शाकाहारी की श्वसन दर ३० – ७० बार प्रति मिनट तक होती जबकि मांसाहारी १८० से ३०० तक | अब आप बताएं की आप किस गति से लेते हैं यदि आपकी दर ४५ प्रति मिनट से ज्यादा है तो किसी योग्य चिकित्सक से मिलिए क्या पता दमे का रोग हो ?२ . शाकाहारी जीव जहाँ अपने फेफडों से वायुदाब उत्पन्न करते हुए खींच कर पानी पीते हैं ( जैसा की हम मनुष्य भी करते हैं )वहीँ मांसाहारी जीव अपनी जीभ से चाट – चाटकर पानी पीता है , अब आप क्या करते हैं ये नहीं मालूम ! क्या पता आपकी जीभ लम्बी हो ?३. मांसाहारी जीव में शारीरिक क्षमता सिर्फ शिकार करने की ही होती है , जैसे शेर की ताकत मात्र शिकार को दबोचने और गिराने की उसके आगे उससे किसी प्रकार का श्रम संभव नहीं है , जबकि शाकाहारी जीव की ताकत लगातार चलायमान होती है , जैसे घोडे , बैल , हाथी , मनुष्य इत्यादि ||४. सभी शाकाहारी जीव अपने भोजन की तलाश में दूर – दूर तक जाते हैं जो कि एक प्राकृतिक स्थानांतरण है , अब मनुष्य भी तो यही करता है || ५ . ज्यादातर मांसाहारी जीव अपनी पिछली एक टांग उठाकर मल – मूत्र त्याग करते हैं जबकि शाकाहारी सीधी अवस्था में ,( मनुष्य भी सीधे बैठकर या खड़े होकर न कि टांग उठाकर ) ||सत्यमेव जयते ||
>सलीम खान जी पहली बात तो यह कि सम्बंधित लेख श्री सुशांत सिंघल जी से साभार लेकर आपके कुतर्कों का जवाब दिया |मैंने स्वयं नहीं लिखा है ,चलिए अब आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि मैं भी जीव – विज्ञान का छात्र रह चुका हूँ , कृपया अब इन तर्कों की कसौटी पर अपने लेख को परखिये |१. किसी भी शाकाहारी जीव की श्वसन प्रक्रिया मांसाहारी की तुलना में धीमी होती है ( जैसे कि मनुष्य में ) गाय , बकरी , हिरन , खरगोश, भैंसे इत्यादि सभी धीमे – धीमे से सांस लेते है , जबकि शेर , कुत्ते , विड़ाल इत्यादि हाँफते हुए तो शाकाहारी की श्वसन दर ३० – ७० बार प्रति मिनट तक होती जबकि मांसाहारी १८० से ३०० तक | अब आप बताएं की आप किस गति से लेते हैं यदि आपकी दर ४५ प्रति मिनट से ज्यादा है तो किसी योग्य चिकित्सक से मिलिए क्या पता दमे का रोग हो ?२ . शाकाहारी जीव जहाँ अपने फेफडों से वायुदाब उत्पन्न करते हुए खींच कर पानी पीते हैं ( जैसा की हम मनुष्य भी करते हैं )वहीँ मांसाहारी जीव अपनी जीभ से चाट – चाटकर पानी पीता है , अब आप क्या करते हैं ये नहीं मालूम ! क्या पता आपकी जीभ लम्बी हो ?३. मांसाहारी जीव में शारीरिक क्षमता सिर्फ शिकार करने की ही होती है , जैसे शेर की ताकत मात्र शिकार को दबोचने और गिराने की उसके आगे उससे किसी प्रकार का श्रम संभव नहीं है , जबकि शाकाहारी जीव की ताकत लगातार चलायमान होती है , जैसे घोडे , बैल , हाथी , मनुष्य इत्यादि ||४. सभी शाकाहारी जीव अपने भोजन की तलाश में दूर – दूर तक जाते हैं जो कि एक प्राकृतिक स्थानांतरण है , अब मनुष्य भी तो यही करता है || ५ . ज्यादातर मांसाहारी जीव अपनी पिछली एक टांग उठाकर मल – मूत्र त्याग करते हैं जबकि शाकाहारी सीधी अवस्था में ,( मनुष्य भी सीधे बैठकर या खड़े होकर न कि टांग उठाकर ) ||सत्यमेव जयते ||
>सलीम खान जी बकवास को अगर बकवास न कहा जाये तो क्या व्याख्यान कहा जाये |जो भी पुस्तक मूढ़ता को बढ़ावा दे उसे मैं तो बकवास ही कहूँगा , ये बात सिर्फ कुरान पर ही नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर धर्म – ग्रन्थों पर लागू होती है चाहे वो हिन्दुओं के ही क्यों न हो आज कि तारीख में वे बकवासों का पुलिंदा ही ज्यादा मालूम देते हैं , खैर हमारे यहाँ तो इसे कालक्रम के अनुसार बदलने की व्यापक व्यवस्था है , लेकिन आपके पुलिंदे में परिवर्तन की कल्पना भी संभव नहीं है तो आप चिपके ही रहें ||सत्यमेव जयते ||
>सलीम खान जी बकवास को अगर बकवास न कहा जाये तो क्या व्याख्यान कहा जाये |जो भी पुस्तक मूढ़ता को बढ़ावा दे उसे मैं तो बकवास ही कहूँगा , ये बात सिर्फ कुरान पर ही नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर धर्म – ग्रन्थों पर लागू होती है चाहे वो हिन्दुओं के ही क्यों न हो आज कि तारीख में वे बकवासों का पुलिंदा ही ज्यादा मालूम देते हैं , खैर हमारे यहाँ तो इसे कालक्रम के अनुसार बदलने की व्यापक व्यवस्था है , लेकिन आपके पुलिंदे में परिवर्तन की कल्पना भी संभव नहीं है तो आप चिपके ही रहें ||सत्यमेव जयते ||
>सत्य को (कु) तर्क की चादर ओढा कर अपने फिर आवेश में आकर यूँ ही लिख दिया…बातें सत्य, मगर उस (कु) की चाशनी लगी है… (यकीन नहीं तो आप स्वयं इन्ही सवालों का जवाब दे दें)
>सत्य को (कु) तर्क की चादर ओढा कर अपने फिर आवेश में आकर यूँ ही लिख दिया…बातें सत्य, मगर उस (कु) की चाशनी लगी है… (यकीन नहीं तो आप स्वयं इन्ही सवालों का जवाब दे दें)
>और हाँ, फिर मैं यहाँ बैठ कर चैलेन्ज देता हूँ कि अगर आप कुरआन में एक भी, एक भी त्रुटी सिद्ध कर दें मैं इस्लाम धर्म छोड़ दूंगा!!
>और हाँ, फिर मैं यहाँ बैठ कर चैलेन्ज देता हूँ कि अगर आप कुरआन में एक भी, एक भी त्रुटी सिद्ध कर दें मैं इस्लाम धर्म छोड़ दूंगा!!
>अजी आपके कुरआन में कोई एक गलती हो हम सिद्ध भी करें ( शुरुआत तो नाम से ही हो जाती है , कोई कुरान कहता है तो कोई कोरान तो कोई कुरआन अब नाम में ही एक मत नहीं है तो आगे जाने दीजिये |वैसे भी हमने मनुष्य के शाकाहारी होने के सम्बन्ध में जो तर्क रखे हैं उससे ही कुरआन की गलत व्याख्या सिद्ध हो जाती ही है ; वैसे अगर कोई बहुत सी गलतियां सिद्ध कर ही दे तो भी आप इस्लाम में ही रहिये क्योंकी आपको तो कोई दूसरे धर्म में लेगा भी नहीं आखिर तर्क ( कुतर्क ) जो करने होंगे ||सत्यमेव जयते ||
>अजी आपके कुरआन में कोई एक गलती हो हम सिद्ध भी करें ( शुरुआत तो नाम से ही हो जाती है , कोई कुरान कहता है तो कोई कोरान तो कोई कुरआन अब नाम में ही एक मत नहीं है तो आगे जाने दीजिये |वैसे भी हमने मनुष्य के शाकाहारी होने के सम्बन्ध में जो तर्क रखे हैं उससे ही कुरआन की गलत व्याख्या सिद्ध हो जाती ही है ; वैसे अगर कोई बहुत सी गलतियां सिद्ध कर ही दे तो भी आप इस्लाम में ही रहिये क्योंकी आपको तो कोई दूसरे धर्म में लेगा भी नहीं आखिर तर्क ( कुतर्क ) जो करने होंगे ||सत्यमेव जयते ||
>कौन से अल्लाह ने कुरान अता की है जिसमें-* एक ही बात बीसों बार दुहरायी गयी है।* खुदा आदमी को बार-बार 'चैलेंज' कर रहा है।* कुरान के जो अध्याय हैं उनका क्रम नितान्त अवैज्ञानिक है।* साहित्यिक दृष्टि से यह एक अति सामान्य कृति है। * अर्थ की दृष्टि से हर दूसरे वाक्य में अल्लाह का नाम लेकर डराया गया है। * तत्व की दृष्टि से भी अत्यन्त सामान्य बातें कहीं गयीं हैं। कोई इसकी कोई पाँच आयतें बता दे जिनको किसी विद्वानों की सभा में उद्धृत (quote) किया जा सके।
>कौन से अल्लाह ने कुरान अता की है जिसमें-* एक ही बात बीसों बार दुहरायी गयी है।* खुदा आदमी को बार-बार 'चैलेंज' कर रहा है।* कुरान के जो अध्याय हैं उनका क्रम नितान्त अवैज्ञानिक है।* साहित्यिक दृष्टि से यह एक अति सामान्य कृति है। * अर्थ की दृष्टि से हर दूसरे वाक्य में अल्लाह का नाम लेकर डराया गया है। * तत्व की दृष्टि से भी अत्यन्त सामान्य बातें कहीं गयीं हैं। कोई इसकी कोई पाँच आयतें बता दे जिनको किसी विद्वानों की सभा में उद्धृत (quote) किया जा सके।
>अनुनाद जी से पूरी तरह से सहमत एक और बात मैं अपनी तरफ से जोड़ना चाहूँगा , कुरआन तात्कालिक रूप से एक डरी एवं लुटी – पिटी हुई कौम को धार्मिक रूप से संबल देने हेतु एक अति महत्वकांक्षी व्यक्ति की रचना है |उसकी सबसे बड़ी और एकमात्र खासियत यह थी की उस समय अरब जगत में उससे बेहतर कोई और कवि नहीं था ||बाकि बुराइयों में भी वो अव्वल ही था || उसकी रचनाओं ने दुनिया को अल्लाह के नाम पर डराने की कुत्सित कोशिश जारी रखी है 'सत्यमेव जयते ||
>अनुनाद जी से पूरी तरह से सहमत एक और बात मैं अपनी तरफ से जोड़ना चाहूँगा , कुरआन तात्कालिक रूप से एक डरी एवं लुटी – पिटी हुई कौम को धार्मिक रूप से संबल देने हेतु एक अति महत्वकांक्षी व्यक्ति की रचना है |उसकी सबसे बड़ी और एकमात्र खासियत यह थी की उस समय अरब जगत में उससे बेहतर कोई और कवि नहीं था ||बाकि बुराइयों में भी वो अव्वल ही था || उसकी रचनाओं ने दुनिया को अल्लाह के नाम पर डराने की कुत्सित कोशिश जारी रखी है 'सत्यमेव जयते ||
>आप लोग वास्तव में एक बेकार बहस में पद गए हैं. सलीम ने जो कहा है उसे वैस ही अर्थों में लें तो अच्छा है. आपने इसे हिन्दू मुसलामानों से भी जोड़ दिया. कितनी बेहूदगी है. क्या आपको हिन्दू धर्म यही सिखाता है? मैं हिन्दू हूँ, इस पर मुझे गर्व है, लेकिन कभी कभार मांसाहार करता हूँ इसका भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं. सलीम ने पहले ही कहा है कि मुसलमान भी ज़रूरी नहीं कि मांसाहारी हों, फिर बहस क्यों? यह सही है कि मनुष्य को सिर्फ वही सब खाने में सहूलियत होती है जो वह खा सकता है. मनुष्य शेर, चीता या भालू का मांस नहीं खा सकता, क्योंकि ये असंभव तो नहीं मुश्किल ज़रूर है. फिर सलीम ने मुसलामानों को भी इसके खाने की पैरवी नहीं की है. आप लोग नाहक ही अंधे होकर दुसरे धर्म पर दोष मध् रहे हैं. आप यदि सच्चे हिन्दू हैं तो कुरान भी पढिये. आप सभी को ऐसी बहस से शर्म आनी चाहिए, देखिये सलीम मुसलमान होते हुए हिन्दू धर्म ग्रंथों को पढ़कर ही उसकी समीक्षा कर रहा है. इस समीक्षा में भी उसने ग्रंथों के सम्मान को कोई चोट नहीं पहुँचाई है.
>आप लोग वास्तव में एक बेकार बहस में पद गए हैं. सलीम ने जो कहा है उसे वैस ही अर्थों में लें तो अच्छा है. आपने इसे हिन्दू मुसलामानों से भी जोड़ दिया. कितनी बेहूदगी है. क्या आपको हिन्दू धर्म यही सिखाता है? मैं हिन्दू हूँ, इस पर मुझे गर्व है, लेकिन कभी कभार मांसाहार करता हूँ इसका भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं. सलीम ने पहले ही कहा है कि मुसलमान भी ज़रूरी नहीं कि मांसाहारी हों, फिर बहस क्यों? यह सही है कि मनुष्य को सिर्फ वही सब खाने में सहूलियत होती है जो वह खा सकता है. मनुष्य शेर, चीता या भालू का मांस नहीं खा सकता, क्योंकि ये असंभव तो नहीं मुश्किल ज़रूर है. फिर सलीम ने मुसलामानों को भी इसके खाने की पैरवी नहीं की है. आप लोग नाहक ही अंधे होकर दुसरे धर्म पर दोष मध् रहे हैं. आप यदि सच्चे हिन्दू हैं तो कुरान भी पढिये. आप सभी को ऐसी बहस से शर्म आनी चाहिए, देखिये सलीम मुसलमान होते हुए हिन्दू धर्म ग्रंथों को पढ़कर ही उसकी समीक्षा कर रहा है. इस समीक्षा में भी उसने ग्रंथों के सम्मान को कोई चोट नहीं पहुँचाई है.
>सुभान अल्लाह क्या लिखा है, क्या तर्क दिये है!!!!सोचता हूँ, माँसाहार शुरू कर दूँ. मगर पहले यह बताएं ब्लॉगिंग कर रहे हो, उसकी अनुमति कुरान में है या नहीं….हम मूर्खों के ग्रंथ तो इस विषय पर मौन है.
>सुभान अल्लाह क्या लिखा है, क्या तर्क दिये है!!!!सोचता हूँ, माँसाहार शुरू कर दूँ. मगर पहले यह बताएं ब्लॉगिंग कर रहे हो, उसकी अनुमति कुरान में है या नहीं….हम मूर्खों के ग्रंथ तो इस विषय पर मौन है.
>आप लोग जिस तरह से बिना पढ़े कुरान या मुसलमान समुदाय को फालतू बात के लिए दोषी बता रहे हैं, मुझे तो शक है कि आपने हिन्दू ग्रंथों को भी पढा होगा??? कितने महान धर्म में जन्म लेकर आप लोग बकवास कर रहे हैं. मुझे तो मेरे हिन्दू धर्म ने किसी भी दुसरे धर्म का अपमान करना नहें सिखाया. सबको सम्मान दो और सभी को सुखी बनाओ, यही है हिंदुत्व. और क्षमा करें हिदू तो कोई धर्म भी नहीं. हम सही मायनों में आर्य हैं. हिन्दू तो सिन्धु नदी के आसपास रहने वालों को विदेशी आक्रान्ताओं ने एक नाम दिया था. हम आर्यों ने उन पर आक्रमण कर उनके वजूद पर कब्ज़ा किया, और उन्हें मारा. अब सौ-सौ चूहे खाकर हम अपने को यहीं का मानने की भूल कर रहे हैं. क्या हिन्दू और क्या मुसलमान हम में से कोई भी असल है ही नहीं. इसलिए अच्छा है कि ऐसी फाल्तो बहस में पड़ने के बजाय सभी को समझकर अपनी प्रतिक्रया दें. यदि मेरी बातों से चोट लगे तो कृपया क्षमा करें.
>आप लोग जिस तरह से बिना पढ़े कुरान या मुसलमान समुदाय को फालतू बात के लिए दोषी बता रहे हैं, मुझे तो शक है कि आपने हिन्दू ग्रंथों को भी पढा होगा??? कितने महान धर्म में जन्म लेकर आप लोग बकवास कर रहे हैं. मुझे तो मेरे हिन्दू धर्म ने किसी भी दुसरे धर्म का अपमान करना नहें सिखाया. सबको सम्मान दो और सभी को सुखी बनाओ, यही है हिंदुत्व. और क्षमा करें हिदू तो कोई धर्म भी नहीं. हम सही मायनों में आर्य हैं. हिन्दू तो सिन्धु नदी के आसपास रहने वालों को विदेशी आक्रान्ताओं ने एक नाम दिया था. हम आर्यों ने उन पर आक्रमण कर उनके वजूद पर कब्ज़ा किया, और उन्हें मारा. अब सौ-सौ चूहे खाकर हम अपने को यहीं का मानने की भूल कर रहे हैं. क्या हिन्दू और क्या मुसलमान हम में से कोई भी असल है ही नहीं. इसलिए अच्छा है कि ऐसी फाल्तो बहस में पड़ने के बजाय सभी को समझकर अपनी प्रतिक्रया दें. यदि मेरी बातों से चोट लगे तो कृपया क्षमा करें.
>@ वजूद साहब सलीम खान जी ने मांसाहार की आड़ में कुरानी दलीलों और धार्मिक उपदेशों को जिस प्रकार से इस्लामी चोला पहनाने का घिनौना खेल खेला है वो शायद आप समझ नहीं पा रहे ,जरा लेख पर आयी हुई सारी टिप्पणियों को ध्यान से पढ़े माजरा खुद – ब – खुद समझ में आ जायेगा |बहुदेववादियों को पीड़ित करती हुई कुरान की एक शर्मनाक आयत आपको क्या इस ब्लॉग पर नहीं दिख रही |लगता है आप भी शर्मनिरपेक्ष बिरादरी में शामिल हो गए हैं |सत्यमेव जयते ||
>@ वजूद साहब सलीम खान जी ने मांसाहार की आड़ में कुरानी दलीलों और धार्मिक उपदेशों को जिस प्रकार से इस्लामी चोला पहनाने का घिनौना खेल खेला है वो शायद आप समझ नहीं पा रहे ,जरा लेख पर आयी हुई सारी टिप्पणियों को ध्यान से पढ़े माजरा खुद – ब – खुद समझ में आ जायेगा |बहुदेववादियों को पीड़ित करती हुई कुरान की एक शर्मनाक आयत आपको क्या इस ब्लॉग पर नहीं दिख रही |लगता है आप भी शर्मनिरपेक्ष बिरादरी में शामिल हो गए हैं |सत्यमेव जयते ||
>वरुण और रस्तोगी जी सिर्फ एक ही रट लगाये हुए है शाकाहार शाकाहार शाकाहार जबकि मांसाहार और शाकाहार दोनों को फायेदेमंद बताया गया है. अरे भाई दुनिया में ९५ प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं. क्या सबकेसब बीमार होकर मरे जा रहे हैं. क्या सबकेसब अकल से पैदल हो चुके हैं.क्या दुनिया का ९५ प्रतिशत इलाका रेगिस्तानी है? क्या अमेरिका, यूरोप और अरब और अफ्रीका में बौद्धिक सोच के लोग नहीं हैं. सबसे ज्यादा शांति का नोबेल पुरस्कार तो मांसाहारी लोगों ने ही जीता है.
>वरुण और रस्तोगी जी सिर्फ एक ही रट लगाये हुए है शाकाहार शाकाहार शाकाहार जबकि मांसाहार और शाकाहार दोनों को फायेदेमंद बताया गया है. अरे भाई दुनिया में ९५ प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं. क्या सबकेसब बीमार होकर मरे जा रहे हैं. क्या सबकेसब अकल से पैदल हो चुके हैं.क्या दुनिया का ९५ प्रतिशत इलाका रेगिस्तानी है? क्या अमेरिका, यूरोप और अरब और अफ्रीका में बौद्धिक सोच के लोग नहीं हैं. सबसे ज्यादा शांति का नोबेल पुरस्कार तो मांसाहारी लोगों ने ही जीता है.
>@भूपेश गुप्ता जी, इस ब्लॉग पर आप पहले इन्सान हैं जिसने दरमियानी तथ्यों पर जाने की सलाह दी, आपका धन्यवाद. और हाँ, अगर इसी तरह हम सब भारतीय सोचने लगे तो वह दिन दूर नहीं कि भारत विश्व में अपना डंका मनवाए…और वह तब होगा जब हम अपने मूल की तरफ लौटें, मूल अर्थात वेदों, पुराणों और कुरआन का अध्ययन करें… और उस पर अमल करने की कोशिश करें….लेकिन आज कल तो भ्रष्टाचार खूब हो गया है और पहुँच चुकाहै अपने चरम सीमा पर… आज लोग (ज्यादातर सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि) हराम खा रहे हैं, हराम कमाई कर रहें हैं. और उनकी औलादें उनकी बातें तो छोडिये उन सब कामों में लगी हैं जो अमेरिका में हो रहा है यानि नंगापॅन………………….. अति सर्वत्र वार्जिय्ते!तःथ्यों को जाने और फिर उस को परखें और कसौटी पर उतारते हुए उसे अमल में लायें….इंशा-अल्लाह ईश्वर आप को, मुझको और सब को सद्बुद्धि देगा…
>@भूपेश गुप्ता जी, इस ब्लॉग पर आप पहले इन्सान हैं जिसने दरमियानी तथ्यों पर जाने की सलाह दी, आपका धन्यवाद. और हाँ, अगर इसी तरह हम सब भारतीय सोचने लगे तो वह दिन दूर नहीं कि भारत विश्व में अपना डंका मनवाए…और वह तब होगा जब हम अपने मूल की तरफ लौटें, मूल अर्थात वेदों, पुराणों और कुरआन का अध्ययन करें… और उस पर अमल करने की कोशिश करें….लेकिन आज कल तो भ्रष्टाचार खूब हो गया है और पहुँच चुकाहै अपने चरम सीमा पर… आज लोग (ज्यादातर सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि) हराम खा रहे हैं, हराम कमाई कर रहें हैं. और उनकी औलादें उनकी बातें तो छोडिये उन सब कामों में लगी हैं जो अमेरिका में हो रहा है यानि नंगापॅन………………….. अति सर्वत्र वार्जिय्ते!तःथ्यों को जाने और फिर उस को परखें और कसौटी पर उतारते हुए उसे अमल में लायें….इंशा-अल्लाह ईश्वर आप को, मुझको और सब को सद्बुद्धि देगा…
>न तो केवल मांसाहार होना सही है और न केवल शाकाहार बल्कि सर्वाहार होना चाहिए ताकि प्रकृति का नियम चलता रहे. अगर दुनिया के ९५ प्रतिशत लोग भी शाकाहारी हो जाये तो सोचिये इतना ज्यादा अन्न का उत्पादन कहाँ से होगा और फिर जो जानवर रहेंगे उनको भी तो कुछ खाना चाहिए. इतने ज्यादा अन्न का उपभोग होगा तो अन्न भी गरीबों से दूर हो जायेगा. और फिर आजकल कोई भी मांसाहार से बच नहीं सकता क्योंकि हम दैनिक जीवन में कई चीजे ऐसी इस्तेमाल करते हैं जो बिना मांस उत्पादों के नहीं बन सकती. बड़े बड़े कारखानों में बड़ी-बड़ी मशीनों के दो हिस्सों को जोड़ने के लिए चमड़े के पट्टे का उपयोग किया जाता है क्योंकि इसका कोई विकल्प आजतक नहीं बन सका है. अगर आप लोग शाकाहारी हैं तो हस्तशिल्प से बनी चीजे ही उपयोग किया कीजिये. आप लोग सलीम को पिछडी सोच का साबित करने में लगे हैं पर मुझे लगता है कि आप लोग खुद बेहद पिछडी सोच के हैं.
>न तो केवल मांसाहार होना सही है और न केवल शाकाहार बल्कि सर्वाहार होना चाहिए ताकि प्रकृति का नियम चलता रहे. अगर दुनिया के ९५ प्रतिशत लोग भी शाकाहारी हो जाये तो सोचिये इतना ज्यादा अन्न का उत्पादन कहाँ से होगा और फिर जो जानवर रहेंगे उनको भी तो कुछ खाना चाहिए. इतने ज्यादा अन्न का उपभोग होगा तो अन्न भी गरीबों से दूर हो जायेगा. और फिर आजकल कोई भी मांसाहार से बच नहीं सकता क्योंकि हम दैनिक जीवन में कई चीजे ऐसी इस्तेमाल करते हैं जो बिना मांस उत्पादों के नहीं बन सकती. बड़े बड़े कारखानों में बड़ी-बड़ी मशीनों के दो हिस्सों को जोड़ने के लिए चमड़े के पट्टे का उपयोग किया जाता है क्योंकि इसका कोई विकल्प आजतक नहीं बन सका है. अगर आप लोग शाकाहारी हैं तो हस्तशिल्प से बनी चीजे ही उपयोग किया कीजिये. आप लोग सलीम को पिछडी सोच का साबित करने में लगे हैं पर मुझे लगता है कि आप लोग खुद बेहद पिछडी सोच के हैं.
>भारत को सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा देने वाला उद्योग कौन सा है? पता कीजिये फिर बताइए.
>भारत को सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा देने वाला उद्योग कौन सा है? पता कीजिये फिर बताइए.
>संजय जी, ब्लोगिंग की अनुमति तो बिलकुल है, अल्लाह ने फ़रमाया है कि दावत दो, इस्लाम (शांति) की दावत दो…. सत्य मार्ग की दावत दो… और मैं वही कर रहा हूँ…आपके लिए अपने लिए और पूरी इंसानियत की शांति के लिए…वेदों में भी इसका ज़िक्र है… यकीन नहीं तो स्वयं पढ़ लें…
>नहीं महोदय, कतई नहीं. मैं सिर्फ एक मानवतावादी द्रष्टिकोण रखता हूँ. हिन्दू हूँ इसलिए और भी ज़्यादा. मानवता का मतलब इंसान और इंसानियत से है. मैं आप सभी का भी सम्मान करता हूँ. ये आपके विचार हैं. मैं सिर्फ ये समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि बिना किसी पुस्तक को पढ़े उसके बारे में टिप्पणी न दें. साथ ही यदि हममें कोई बुराई है तो उसे दूर करने में सकारात्मक ऊर्जा लगाएं. मुझे उम्मीद है कि कम बेहतर हैं, लेकिन इसके लिए किसी दुसरे को कटघरे में खडा करना गलत है. उसमें भी अच्छाइयां हैं. सब में अच्छा है. ये संसार बहुत खूबसूरत है. हम इसमें सहभागी बनें. बस किसी को दोष ना दें, यही मानवता है. यकीन मानिए मैं किसी राजनीतिक विचारधारा से भी प्रेरित नहीं.
>संजय जी, ब्लोगिंग की अनुमति तो बिलकुल है, अल्लाह ने फ़रमाया है कि दावत दो, इस्लाम (शांति) की दावत दो…. सत्य मार्ग की दावत दो… और मैं वही कर रहा हूँ…आपके लिए अपने लिए और पूरी इंसानियत की शांति के लिए…वेदों में भी इसका ज़िक्र है… यकीन नहीं तो स्वयं पढ़ लें…
>नहीं महोदय, कतई नहीं. मैं सिर्फ एक मानवतावादी द्रष्टिकोण रखता हूँ. हिन्दू हूँ इसलिए और भी ज़्यादा. मानवता का मतलब इंसान और इंसानियत से है. मैं आप सभी का भी सम्मान करता हूँ. ये आपके विचार हैं. मैं सिर्फ ये समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि बिना किसी पुस्तक को पढ़े उसके बारे में टिप्पणी न दें. साथ ही यदि हममें कोई बुराई है तो उसे दूर करने में सकारात्मक ऊर्जा लगाएं. मुझे उम्मीद है कि कम बेहतर हैं, लेकिन इसके लिए किसी दुसरे को कटघरे में खडा करना गलत है. उसमें भी अच्छाइयां हैं. सब में अच्छा है. ये संसार बहुत खूबसूरत है. हम इसमें सहभागी बनें. बस किसी को दोष ना दें, यही मानवता है. यकीन मानिए मैं किसी राजनीतिक विचारधारा से भी प्रेरित नहीं.
>you are right, Mr. Gupta !!!
>you are right, Mr. Gupta !!!
>@ सलीम खान जी अब तुम्हारे अपने चैलेन्ज की हवा निकल गयी तो भूपेश ' वजूद ' जी की टिप्पणियों का सहारा ले रहे हो |वैसे इस ब्लॉग पर इस प्रकार के लोग भी आते ही रहेंगे जो मामले की गहराई को समझे बिना ही टिपियायेंगे ||सत्यमेव जयते ||
>@ सलीम खान जी अब तुम्हारे अपने चैलेन्ज की हवा निकल गयी तो भूपेश ' वजूद ' जी की टिप्पणियों का सहारा ले रहे हो |वैसे इस ब्लॉग पर इस प्रकार के लोग भी आते ही रहेंगे जो मामले की गहराई को समझे बिना ही टिपियायेंगे ||सत्यमेव जयते ||
>खुर्शीद जी, मुझेलागता है भारत में विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला सबसे बड़ा उद्योग है- चमड़ा उद्योग
>खुर्शीद जी, मुझेलागता है भारत में विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला सबसे बड़ा उद्योग है- चमड़ा उद्योग
>@ खुर्शीद तुम्हारे नितांत अवैज्ञानिक कुतर्कों का जवाब मैं निम्न लेख के माध्यम से दे रहा हूँ , डॉ देविंदर शर्मा जी के इस आलेख में तुम्हारी सोच को नाप को देख लो कि दुनिया को शाकाहार से अधिक फायदा है या मांसाहारी प्रवित्ति से . …………………………प्रथम खंड ………….,पिछले दिनों मैं बहुत दिलचस्प और जानकारी बढ़ाने वाले टीवी शो में शामिल हुआ। लोकसभा टीवी पर प्रसारित होने वाले 'विचार मंथन' कार्यक्रम का संचालन स्वामी अग्निवेश कर रहे थे। इसमें उपभोक्तावाद, मांस की बढ़ती खपत, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव और मांस उत्पादन की वैश्विक ताप बढ़ाने में भूमिका आदि सवालों पर विचार-विमर्श हुआ। पैनल में मेरे साथ साध्वी भगवती सरस्वती भी थीं। वह मूल रूप से तो अमेरिका की हैं, किंतु आजकल ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन में रहती हैं। वह स्वामी चिदानंद सरस्वती की शिष्या हैं। एक दर्शक ने उनसे सवाल पूछा कि शरीर को रोजाना कितने प्रोटीन की जरूरत होती है और मांस के सेवन से कितना प्रोटीन हासिल किया जा सकता है?इसका साध्वी ने जो जवाब दिया, उससे काफी गलतफहमियां दूर हो गईं। इससे पहले मैंने भी कभी नहीं सोचा कि हमें इतने प्रोटीन की जरूरत नहीं होती जितना कि उद्योग जगत द्वारा हमें बताया जाता है। घर पहुंचकर मैंने स्वामी चिदानंद सरस्वती की पुस्तक 'फार योर बाडी, योर माइंड, योर सोल एंड योर प्लेनेट' पढ़ी तो दिमाग के काफी झाले दूर हो गए। हम सब जानते हैं कि प्रोटीन से मांसपेशियां और हड्डियों का विकास होता है। हम यह भी जानते हैं कि जब किशोरावस्था तक शरीर तेजी से बढ़ता है तब इसे अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। नवजात शिशुओं को प्रोटीन की सर्वाधिक जरूरत होती है। फिर भी, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार क्या है? यह है मां का दूध। और मां के दूध में कितना प्रोटीन होता है? मात्र पांच प्रतिशत! जबकि मांस व डेयरी उद्योग हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि एक बड़े व्यक्ति को भी ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें अधिक से अधिक प्रोटीन हो। यह बकवास है। यह उनकी मार्केटिंग रणनीति के अलावा कुछ नहीं है। स्वामी चिदानंद सरस्वती की किताब के अनुसार यदि पूर्वाग्रह से मुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान पर गौर करें तो इसके द्वारा अनुशंसित प्रोटीन का प्रतिशत मांस व डेयरी उद्योग द्वारा प्रायोजित अनुसंधान केंद्र द्वारा बताई गई मात्रा से काफी कम है। उदाहरण के लिए, अमेरिकन जर्नल आफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन रोजाना सेवन किए गए भोजन का 2.5 प्रतिशत प्रोटीन लेने की सिफारिश करता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश 4.5 प्रतिशत की है। फूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड इस आंकड़े को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर देता है।दूसरे, पौधो से मिलने वाले भोजन, जिसमें सब्जियां, खाद्यान्न और फली आदि शामिल हैं, में इतना प्रोटीन होता है जिससे कि हमारी रोजाना की जरूरत पूरी हो जाए। अगर हम संतुलित भोजन करते हैं तो निश्चित तौर पर पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिल जाता है। प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत हैं दालें, सोयाबीन, डेयरी उत्पाद, गिरि और मटर आदि। उदाहरण के लिए दलहन में 29 फीसदी, मटर में 28 प्रतिशत, पालक में 49 प्रतिशत, गोभी में 40 प्रतिशत, फलियों में 12-18 प्रतिशत और यहां तक कि टमाटर में 40 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इसके बाद पुस्तक में कुछ ऐसे सवालों के जवाब दिए गए हैं जो अक्सर उठाए जाते हैं जैसे हम प्रोटीन की रोजमर्रा की जरूरत कैसे पूरी कर सकते हैं? इसके अलावा आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी-12 और अन्य तत्वों के संबंध में भी जिज्ञासा शांत की गई है। हमने गोमांस उत्पादन के पारिस्थितिकीय प्रभावों और मांस सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चर्चा की। उल्लेखनीय है कि औसतन एक अमेरिकी प्रतिवर्ष 125 किलोग्राम मांस का सेवन करता है, चीनी 70 किलोग्राम और भारतीय मात्र 3.5 किलोग्राम। इससे पता चलता है कि मांस उत्पादन के लिए हर साल दुनिया भर में साढ़े पांच हजार करोड़ पशुओं का संहार कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी पर जितने मनुष्य रहते हैं, उससे दस गुना अधिक जानवरों का हर साल वध कर दिया जाता है। एक किलोग्राम गोमांस के उत्पादन में करीब 16 किलोग्राम अन्न की आवश्यकता पड़ती है।
>द्वितीय खंड …….,एक साल पहले संसार में खाद्यान्न के संकट के पीछे यही सबसे बड़ा कारण था। धनी और औद्योगिक देशों में लोग चपाती के रूप में खालिस अन्न नहीं खाते। वे पहले पशुओं को खाद्यान्न खिलाते हैं और उसके बाद मांस का सेवन करते हैं। एक किलोग्राम मांस की समग्र उत्पादन प्रक्रिया में करीब 70 हजार लीटर पानी खर्च हो जाता है। एक बार न्यूजवीक पत्रिका में छपा था कि साढ़े चार सौ किलोग्राम के एक बैल की परवरिश में इतना पानी लग जाता है कि उसमें एक पानी का जहाज चलाया जा सके। एक हैम्बर्गर तैयार करने में वातावरण में 75 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड घुल जाती है। अगर आप पूरे दिन अपनी कार दौड़ाते हैं तो मात्र तीन किलोग्राम गैस ही निकलेगी। फिर भी, हमें कभी नहीं बताया गया कि औद्योगिक कृषि द्वारा उत्पादित खाद्य पदार्थ हमारे शरीर और पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं?हमें यह भरोसा दिलाया जाता है कि हम जो भी खा रहे हैं वह उच्च गुणवत्ता का है। खाद्य पदार्थो का प्रसंस्करण करने वाली कंपनियां हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं और फिर गुणवत्ता नियंत्रण के लिए नियामक संस्थाएं तो हैं ही। यह सब बकवास है। कृषि उद्योग, खाद्य पदार्थ उद्योग, दवा उद्योग और बीमा उद्योग की आपस में मिलीभगत है। उन्हें एक-दूसरे से फायदा पहुंचता है। कृषि का जितना औद्योगीकरण होगा, जंक फूड की उतनी ही खपत बढ़ेगी। जितना अधिक जंक फूड खाया जाएगा, बीमार पड़ने की आशंका उतनी ही अधिक होगी। इसका फायदा दवा कंपनियों को मिलेगा। और जितना अधिक लोग बीमार पड़ेंगे वे उतना ही महंगा बीमा कराने के लिए तैयार हो जाएंगे। यह कुचक्र चलता रहता है। इसे ही आर्थिक संवृद्धि कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सकल घरेलू उत्पाद ऐसी राशि से बढ़ता है जो अधिक से अधिक हाथों से निकलती है। अर्थशास्त्री और नीति निर्माता मासूम लोगों को कितनी आसानी से मूर्ख बना देते हैं। ||डॉ देविंदर शर्मा ……
>@ खुर्शीद तुम्हारे नितांत अवैज्ञानिक कुतर्कों का जवाब मैं निम्न लेख के माध्यम से दे रहा हूँ , डॉ देविंदर शर्मा जी के इस आलेख में तुम्हारी सोच को नाप को देख लो कि दुनिया को शाकाहार से अधिक फायदा है या मांसाहारी प्रवित्ति से . …………………………प्रथम खंड ………….,पिछले दिनों मैं बहुत दिलचस्प और जानकारी बढ़ाने वाले टीवी शो में शामिल हुआ। लोकसभा टीवी पर प्रसारित होने वाले 'विचार मंथन' कार्यक्रम का संचालन स्वामी अग्निवेश कर रहे थे। इसमें उपभोक्तावाद, मांस की बढ़ती खपत, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव और मांस उत्पादन की वैश्विक ताप बढ़ाने में भूमिका आदि सवालों पर विचार-विमर्श हुआ। पैनल में मेरे साथ साध्वी भगवती सरस्वती भी थीं। वह मूल रूप से तो अमेरिका की हैं, किंतु आजकल ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन में रहती हैं। वह स्वामी चिदानंद सरस्वती की शिष्या हैं। एक दर्शक ने उनसे सवाल पूछा कि शरीर को रोजाना कितने प्रोटीन की जरूरत होती है और मांस के सेवन से कितना प्रोटीन हासिल किया जा सकता है?इसका साध्वी ने जो जवाब दिया, उससे काफी गलतफहमियां दूर हो गईं। इससे पहले मैंने भी कभी नहीं सोचा कि हमें इतने प्रोटीन की जरूरत नहीं होती जितना कि उद्योग जगत द्वारा हमें बताया जाता है। घर पहुंचकर मैंने स्वामी चिदानंद सरस्वती की पुस्तक 'फार योर बाडी, योर माइंड, योर सोल एंड योर प्लेनेट' पढ़ी तो दिमाग के काफी झाले दूर हो गए। हम सब जानते हैं कि प्रोटीन से मांसपेशियां और हड्डियों का विकास होता है। हम यह भी जानते हैं कि जब किशोरावस्था तक शरीर तेजी से बढ़ता है तब इसे अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। नवजात शिशुओं को प्रोटीन की सर्वाधिक जरूरत होती है। फिर भी, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार क्या है? यह है मां का दूध। और मां के दूध में कितना प्रोटीन होता है? मात्र पांच प्रतिशत! जबकि मांस व डेयरी उद्योग हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि एक बड़े व्यक्ति को भी ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें अधिक से अधिक प्रोटीन हो। यह बकवास है। यह उनकी मार्केटिंग रणनीति के अलावा कुछ नहीं है। स्वामी चिदानंद सरस्वती की किताब के अनुसार यदि पूर्वाग्रह से मुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान पर गौर करें तो इसके द्वारा अनुशंसित प्रोटीन का प्रतिशत मांस व डेयरी उद्योग द्वारा प्रायोजित अनुसंधान केंद्र द्वारा बताई गई मात्रा से काफी कम है। उदाहरण के लिए, अमेरिकन जर्नल आफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन रोजाना सेवन किए गए भोजन का 2.5 प्रतिशत प्रोटीन लेने की सिफारिश करता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश 4.5 प्रतिशत की है। फूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड इस आंकड़े को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर देता है।दूसरे, पौधो से मिलने वाले भोजन, जिसमें सब्जियां, खाद्यान्न और फली आदि शामिल हैं, में इतना प्रोटीन होता है जिससे कि हमारी रोजाना की जरूरत पूरी हो जाए। अगर हम संतुलित भोजन करते हैं तो निश्चित तौर पर पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिल जाता है। प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत हैं दालें, सोयाबीन, डेयरी उत्पाद, गिरि और मटर आदि। उदाहरण के लिए दलहन में 29 फीसदी, मटर में 28 प्रतिशत, पालक में 49 प्रतिशत, गोभी में 40 प्रतिशत, फलियों में 12-18 प्रतिशत और यहां तक कि टमाटर में 40 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इसके बाद पुस्तक में कुछ ऐसे सवालों के जवाब दिए गए हैं जो अक्सर उठाए जाते हैं जैसे हम प्रोटीन की रोजमर्रा की जरूरत कैसे पूरी कर सकते हैं? इसके अलावा आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी-12 और अन्य तत्वों के संबंध में भी जिज्ञासा शांत की गई है। हमने गोमांस उत्पादन के पारिस्थितिकीय प्रभावों और मांस सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चर्चा की। उल्लेखनीय है कि औसतन एक अमेरिकी प्रतिवर्ष 125 किलोग्राम मांस का सेवन करता है, चीनी 70 किलोग्राम और भारतीय मात्र 3.5 किलोग्राम। इससे पता चलता है कि मांस उत्पादन के लिए हर साल दुनिया भर में साढ़े पांच हजार करोड़ पशुओं का संहार कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी पर जितने मनुष्य रहते हैं, उससे दस गुना अधिक जानवरों का हर साल वध कर दिया जाता है। एक किलोग्राम गोमांस के उत्पादन में करीब 16 किलोग्राम अन्न की आवश्यकता पड़ती है।
>द्वितीय खंड …….,एक साल पहले संसार में खाद्यान्न के संकट के पीछे यही सबसे बड़ा कारण था। धनी और औद्योगिक देशों में लोग चपाती के रूप में खालिस अन्न नहीं खाते। वे पहले पशुओं को खाद्यान्न खिलाते हैं और उसके बाद मांस का सेवन करते हैं। एक किलोग्राम मांस की समग्र उत्पादन प्रक्रिया में करीब 70 हजार लीटर पानी खर्च हो जाता है। एक बार न्यूजवीक पत्रिका में छपा था कि साढ़े चार सौ किलोग्राम के एक बैल की परवरिश में इतना पानी लग जाता है कि उसमें एक पानी का जहाज चलाया जा सके। एक हैम्बर्गर तैयार करने में वातावरण में 75 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड घुल जाती है। अगर आप पूरे दिन अपनी कार दौड़ाते हैं तो मात्र तीन किलोग्राम गैस ही निकलेगी। फिर भी, हमें कभी नहीं बताया गया कि औद्योगिक कृषि द्वारा उत्पादित खाद्य पदार्थ हमारे शरीर और पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं?हमें यह भरोसा दिलाया जाता है कि हम जो भी खा रहे हैं वह उच्च गुणवत्ता का है। खाद्य पदार्थो का प्रसंस्करण करने वाली कंपनियां हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं और फिर गुणवत्ता नियंत्रण के लिए नियामक संस्थाएं तो हैं ही। यह सब बकवास है। कृषि उद्योग, खाद्य पदार्थ उद्योग, दवा उद्योग और बीमा उद्योग की आपस में मिलीभगत है। उन्हें एक-दूसरे से फायदा पहुंचता है। कृषि का जितना औद्योगीकरण होगा, जंक फूड की उतनी ही खपत बढ़ेगी। जितना अधिक जंक फूड खाया जाएगा, बीमार पड़ने की आशंका उतनी ही अधिक होगी। इसका फायदा दवा कंपनियों को मिलेगा। और जितना अधिक लोग बीमार पड़ेंगे वे उतना ही महंगा बीमा कराने के लिए तैयार हो जाएंगे। यह कुचक्र चलता रहता है। इसे ही आर्थिक संवृद्धि कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सकल घरेलू उत्पाद ऐसी राशि से बढ़ता है जो अधिक से अधिक हाथों से निकलती है। अर्थशास्त्री और नीति निर्माता मासूम लोगों को कितनी आसानी से मूर्ख बना देते हैं। ||डॉ देविंदर शर्मा ……
>again KUTARKA
>again KUTARKA
>मिया जी आप कुछ खाओ किसी को कोई भी ओब्जेक्शन नहीं. परन्तु आपने हिन्दू धर्म को घसीट कर बहुत ही बड़ी नादानी कर दी. और उस पर अपने गो मॉस पर जो दलील दी है वो सीमा को पार करती है.हिन्दू धर्म के आपके अल्प ज्ञान पर सिर्फ मैं इतना कहूँगा जिस काल की आप बात करते है उस समय आपका इस्लाम पंथ तो था नहीं हिन्दू शब्द आपके इस्लाम से पहेले पुरे मानव जाती के लिया था.दूसरा हिन्दुओ में बहुत से लोग थे सुर असुर, देव, किन्नर, सर्प, गन्धर्व उस समय इनके विभिन्न प्रकार के आहार थे.सो हम मानते है असुर और कुछ और जाती उस समय की सुरा पान और मांस खाती थी. परन्तु हिन्दू में देव जाती को ही आदर्श मान कर उसके जैसे बनाने की परम्परा है. अतः मित्र यह भारत है इतने अल्प ज्ञान और सहस से हिन्दुओ को अपने एक गाली दी है. परन्तु क्योंकि हम सेकुलर है इसलिए यह भी लिखा आपका पड़कर जवाब देते है.अब दूसरा आपकी वो नुकीले दांतों और नाखून वाली कहानी तो मित्र हम हिन्दुओ को गो मांस पर प्रवचन देने की बाद क्यों आपके यह नकुले दन्त सूवर का मांस आपको सुस्वाद खिलाने में सहायक नहीं है. भाई दंत नकुले है और अवैलाबिलिटी भी है. इस अति स्वादिष्ट सूवर के मांस का भी उपभोग करो जिसके की पश्चिमी देश दीवाने है. सतही ज्ञान बहुत हानिकारक है डॉ. जाकिर नाइक भी इसी से पीड़ित है. कृपया उस रस्ते पर न जाय अन्यथा भारी अनर्थ हो जायगा.http://parshuram27.blogspot.com/2009/07/blog-post_30.html
>मिया जी आप कुछ खाओ किसी को कोई भी ओब्जेक्शन नहीं. परन्तु आपने हिन्दू धर्म को घसीट कर बहुत ही बड़ी नादानी कर दी. और उस पर अपने गो मॉस पर जो दलील दी है वो सीमा को पार करती है.हिन्दू धर्म के आपके अल्प ज्ञान पर सिर्फ मैं इतना कहूँगा जिस काल की आप बात करते है उस समय आपका इस्लाम पंथ तो था नहीं हिन्दू शब्द आपके इस्लाम से पहेले पुरे मानव जाती के लिया था.दूसरा हिन्दुओ में बहुत से लोग थे सुर असुर, देव, किन्नर, सर्प, गन्धर्व उस समय इनके विभिन्न प्रकार के आहार थे.सो हम मानते है असुर और कुछ और जाती उस समय की सुरा पान और मांस खाती थी. परन्तु हिन्दू में देव जाती को ही आदर्श मान कर उसके जैसे बनाने की परम्परा है. अतः मित्र यह भारत है इतने अल्प ज्ञान और सहस से हिन्दुओ को अपने एक गाली दी है. परन्तु क्योंकि हम सेकुलर है इसलिए यह भी लिखा आपका पड़कर जवाब देते है.अब दूसरा आपकी वो नुकीले दांतों और नाखून वाली कहानी तो मित्र हम हिन्दुओ को गो मांस पर प्रवचन देने की बाद क्यों आपके यह नकुले दन्त सूवर का मांस आपको सुस्वाद खिलाने में सहायक नहीं है. भाई दंत नकुले है और अवैलाबिलिटी भी है. इस अति स्वादिष्ट सूवर के मांस का भी उपभोग करो जिसके की पश्चिमी देश दीवाने है. सतही ज्ञान बहुत हानिकारक है डॉ. जाकिर नाइक भी इसी से पीड़ित है. कृपया उस रस्ते पर न जाय अन्यथा भारी अनर्थ हो जायगा.http://parshuram27.blogspot.com/2009/07/blog-post_30.html
>अरे , गधों से बदतर दिमाग वाले " चैलेन्ज – नबीसों " समझाने के लिए तर्कों की नहीं बल्कि खुदाई पैगम्बर की ज़रूरत है ||तब भी एक नई आसमानी किताब लिखी जायेगी |आमिन् ||
>अरे , गधों से बदतर दिमाग वाले " चैलेन्ज – नबीसों " समझाने के लिए तर्कों की नहीं बल्कि खुदाई पैगम्बर की ज़रूरत है ||तब भी एक नई आसमानी किताब लिखी जायेगी |आमिन् ||
>त्यागी जी से पूर्णतया सहमती @ त्यागी जी असल में १४०० साल पहले की खुराफात अभी तक दिमाग में जड़ कर गयी है सो , तर्क भी इनके मस्तिष्क में नहीं उतर रहे ,ऑपरेशन ही करना पड़ेगा ||@ सलीम खान चैलेन्ज में तो हार ही चुके हो |चलिए भाई शुद्धि के इच्छुक हो तो संपर्क करो , ||याद रखना मैं कोई स्वघोषित पैगम्बर नहीं हूँ ||
>त्यागी जी से पूर्णतया सहमती @ त्यागी जी असल में १४०० साल पहले की खुराफात अभी तक दिमाग में जड़ कर गयी है सो , तर्क भी इनके मस्तिष्क में नहीं उतर रहे ,ऑपरेशन ही करना पड़ेगा ||@ सलीम खान चैलेन्ज में तो हार ही चुके हो |चलिए भाई शुद्धि के इच्छुक हो तो संपर्क करो , ||याद रखना मैं कोई स्वघोषित पैगम्बर नहीं हूँ ||
>MR VARUN, YOU ARE INVITED IN LUCKNOW TOMORROW AT CHARBAGH AT RAVINDRALAY. WAHAN SWAMI LAKSHI SHANKARACHARYA BHI AAYENGE… AAPKE AANE JANE KA KHARCHA MAIN DETA DOON, AAP APNE SAWALON KE PULINDE KE SAATH AANAA MAIN WAHI JAWAAB DUNGA…
>MR VARUN, YOU ARE INVITED IN LUCKNOW TOMORROW AT CHARBAGH AT RAVINDRALAY. WAHAN SWAMI LAKSHI SHANKARACHARYA BHI AAYENGE… AAPKE AANE JANE KA KHARCHA MAIN DETA DOON, AAP APNE SAWALON KE PULINDE KE SAATH AANAA MAIN WAHI JAWAAB DUNGA…
>Tyagi ji please tell me what is the origin of "HINDU" WORD.
>Tyagi ji please tell me what is the origin of "HINDU" WORD.
>READ MY ARTICLE "MAIN, SALEEM KHAN HINDU HOON" AT http://swachchhsandesh.blogspot.com/2009/07/yes-i-am-hindu.html
>READ MY ARTICLE "MAIN, SALEEM KHAN HINDU HOON" AT http://swachchhsandesh.blogspot.com/2009/07/yes-i-am-hindu.html
>@ सलीम खान भाई अब हम तुम्हारे जैसे तो हैं नहीं लगे जबरन दीन की दावत देने , चाहे कोई आये न आये | और रही बात स्वामी जी के व्याख्यान की तो वो तो कही भी सुन लेंगे |वैसे भी हमें इतनी फुर्सत तो है नहीं और रही बात खर्च की तो मुझ पर नहीं बल्कि अपने धर्म को जाकिर नाइक जैसे कूपमंडूकों से बचाने पर खर्च करो तभी प्रगति है ||@ खुर्शीद भाई क्या जान कर करोगे कि हिन्दू शब्द कहाँ से आया ?कहीं से भी आया बस ये देखो कि आज क्या कर रहा है हिन्दू ||कम से कम जबरन धर्म में घुसे कुतर्की कीडों से खुद तो लड़ रहा है धर्म के नाम पर ………..धर्म खतरे में का नारा तो नहीं लगा रहा ||
>@ सलीम खान भाई अब हम तुम्हारे जैसे तो हैं नहीं लगे जबरन दीन की दावत देने , चाहे कोई आये न आये | और रही बात स्वामी जी के व्याख्यान की तो वो तो कही भी सुन लेंगे |वैसे भी हमें इतनी फुर्सत तो है नहीं और रही बात खर्च की तो मुझ पर नहीं बल्कि अपने धर्म को जाकिर नाइक जैसे कूपमंडूकों से बचाने पर खर्च करो तभी प्रगति है ||@ खुर्शीद भाई क्या जान कर करोगे कि हिन्दू शब्द कहाँ से आया ?कहीं से भी आया बस ये देखो कि आज क्या कर रहा है हिन्दू ||कम से कम जबरन धर्म में घुसे कुतर्की कीडों से खुद तो लड़ रहा है धर्म के नाम पर ………..धर्म खतरे में का नारा तो नहीं लगा रहा ||
>वरुण, देखिये आपतो नहीं बता सके की हिन्दू धर्म कहाँ से आया लेकिन मैं बताता हूँ, यह बहुत ही मजेदार बात होगी जब आप ये जानेंगे कि 'हिंदू शब्द' न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था. अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है कि भारतीय (उपमहाद्वीप) में रहने वाले सभी हिंदू है चाहे वो किसी धर्म के हों. हिंदू शब्द धर्म निरपेक्ष शब्द है यह किसी धर्म से सम्बंधित नही है बल्कि यह एक भौगोलिक शब्द है. 'हिंदू शब्द' संस्कृत भाषा के शब्द 'सिन्धु' का ग़लत उच्चारण का नतीजा है जो कई हज़ार साल पहले पर्सियन वालों ने इस्तेमाल किया था. उनके उच्चारण में 'स' अक्षर का उच्चारण 'ह' होता था. हाँ….मैं, सलीम खान हिन्दू हूँ !!!हिंदू शब्द अपने आप में एक भौगोलिक पहचान लिए हुए है, यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया था या शायेद इन्दुस नदी से घिरे स्थल पर रहने वालों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से इतिहासविद्दों का मानना है कि 'हिंदू' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब्स द्वारा प्रयोग किया गया था मगर कुछ इतिहासविद्दों का यह भी मानना है कि यह पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम रास्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल किया था।धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था.भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि "the word Hindu can be earliest traced to a source a tantrik in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion…" पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया। हिन्दुज्म शब्द कि उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया.
>'हिन्दु शब्द' के इस्तेमाल को धर्म के लिए प्रयोग करने के बजाये इसे सनातन या वैदिक धर्म कहना चाहिए. स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्ति का कहना है कि "यह वेदंटिस्ट धर्म" होना चाहिए|
>वरुण, देखिये आपतो नहीं बता सके की हिन्दू धर्म कहाँ से आया लेकिन मैं बताता हूँ, यह बहुत ही मजेदार बात होगी जब आप ये जानेंगे कि 'हिंदू शब्द' न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था. अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है कि भारतीय (उपमहाद्वीप) में रहने वाले सभी हिंदू है चाहे वो किसी धर्म के हों. हिंदू शब्द धर्म निरपेक्ष शब्द है यह किसी धर्म से सम्बंधित नही है बल्कि यह एक भौगोलिक शब्द है. 'हिंदू शब्द' संस्कृत भाषा के शब्द 'सिन्धु' का ग़लत उच्चारण का नतीजा है जो कई हज़ार साल पहले पर्सियन वालों ने इस्तेमाल किया था. उनके उच्चारण में 'स' अक्षर का उच्चारण 'ह' होता था. हाँ….मैं, सलीम खान हिन्दू हूँ !!!हिंदू शब्द अपने आप में एक भौगोलिक पहचान लिए हुए है, यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया था या शायेद इन्दुस नदी से घिरे स्थल पर रहने वालों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से इतिहासविद्दों का मानना है कि 'हिंदू' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब्स द्वारा प्रयोग किया गया था मगर कुछ इतिहासविद्दों का यह भी मानना है कि यह पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम रास्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल किया था।धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था.भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि "the word Hindu can be earliest traced to a source a tantrik in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion…" पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया। हिन्दुज्म शब्द कि उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया.
>'हिन्दु शब्द' के इस्तेमाल को धर्म के लिए प्रयोग करने के बजाये इसे सनातन या वैदिक धर्म कहना चाहिए. स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्ति का कहना है कि "यह वेदंटिस्ट धर्म" होना चाहिए|
>@ सलीम खान जी चलो भाई हिन्दू शब्द तो विदेशी निकला ,खैर अब हिन्दू धर्म में न सही तो सनातन धर्म या वेदंटिस्ट धर्म में ही अपनी शुद्धि करवा लो |अमा यार चैलेन्ज तो तुम हार ही चुके हो ||
>@ सलीम खान जी चलो भाई हिन्दू शब्द तो विदेशी निकला ,खैर अब हिन्दू धर्म में न सही तो सनातन धर्म या वेदंटिस्ट धर्म में ही अपनी शुद्धि करवा लो |अमा यार चैलेन्ज तो तुम हार ही चुके हो ||
>मैने आप लोगो की पूरी बहस पढी…मेरी सारे ब्लोग्गर भाईयों से गुज़ारिश है की "क्रप्या करके किसी धर्म, धर्म ग्रन्थ, या उसके अनुयायियों को गाली न दें…अपशब्द न इस्तेमाल करेंरही बात मासांहार या शाकाहार की…तो आगरा आईये…आगरा में नाई की मन्डी में सबसे अच्छा मांसाहार भोजन मिलता है…..सुबह ६ बजे से रात के २ बजे तक…..और उस भोजन को खाने वाले लोगो में "सनातन धर्म के अनुयायियों का प्रतिशत ७५ है।"वो लोग तो बीमार नही हुये??????उन्हे तो बीमार हो जाना चाहिये था अब तक….
>मैने आप लोगो की पूरी बहस पढी…मेरी सारे ब्लोग्गर भाईयों से गुज़ारिश है की "क्रप्या करके किसी धर्म, धर्म ग्रन्थ, या उसके अनुयायियों को गाली न दें…अपशब्द न इस्तेमाल करेंरही बात मासांहार या शाकाहार की…तो आगरा आईये…आगरा में नाई की मन्डी में सबसे अच्छा मांसाहार भोजन मिलता है…..सुबह ६ बजे से रात के २ बजे तक…..और उस भोजन को खाने वाले लोगो में "सनातन धर्म के अनुयायियों का प्रतिशत ७५ है।"वो लोग तो बीमार नही हुये??????उन्हे तो बीमार हो जाना चाहिये था अब तक….
>सलीम जी, एक बार पुन: बधाई। आपके लेख मांसाहार/शाकाहार के बारे में पढकर बडा अच्छा लगा। आपसे यह जानने की अपेक्षा है कि इतने बेहतरीन दांतों और आंतों से आपको गाय का मांस स्वादिष्ट लगा या सूअर का। और कभी मौका लगे तो गिरगिट भी खाकर देखिएगा। लोग कहते हैं कि उसका मांस भी बहुत स्वादिष्ट होता है। बात अधूरी ही रह जाएगी अगर यह न कहा जाए कि मांस भक्षण की ऐसी ही चटोरी जीभों ने अजन्मे मानव शिशुओं को भी खाना शुरु कर दिया है अगर कभी मौका लगे तो उनके शरीर के स्वाद का भी रसबखान अपने अगले लेख में करिएगा।
>सलीम जी, एक बार पुन: बधाई। आपके लेख मांसाहार/शाकाहार के बारे में पढकर बडा अच्छा लगा। आपसे यह जानने की अपेक्षा है कि इतने बेहतरीन दांतों और आंतों से आपको गाय का मांस स्वादिष्ट लगा या सूअर का। और कभी मौका लगे तो गिरगिट भी खाकर देखिएगा। लोग कहते हैं कि उसका मांस भी बहुत स्वादिष्ट होता है। बात अधूरी ही रह जाएगी अगर यह न कहा जाए कि मांस भक्षण की ऐसी ही चटोरी जीभों ने अजन्मे मानव शिशुओं को भी खाना शुरु कर दिया है अगर कभी मौका लगे तो उनके शरीर के स्वाद का भी रसबखान अपने अगले लेख में करिएगा।
>बेकार की बहस। अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें। यहां कुछ भी नया नहीं कहा जा रहा है। ऊपर से नीचे तक पढ़ने के बाद लगा कि सब इधर-उधर के तर्क हैं। शरद कोकास की टिप्पणी में ही सार है।
>बेकार की बहस। अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें। यहां कुछ भी नया नहीं कहा जा रहा है। ऊपर से नीचे तक पढ़ने के बाद लगा कि सब इधर-उधर के तर्क हैं। शरद कोकास की टिप्पणी में ही सार है।
>जायसवाल का कथन वैज्ञानिक तथ्य है , चिकित्सा विज्ञानं समर्थित है, दालें,व दूध आदि में प्रथम श्रेणी की प्रोटीन होतीं हैं ,जो मांस में नहीं होतीं | , मांस के साथ उस पशु की बीमारियां , उसकी आदतें , मनोभाव भी आजाते हैं ,खाने वालों में , मांसाहार पूर्ण अवैज्ञानिक है , आदम ने सर्वप्रथम "फल " खाया था , बकरा नहीं , मुर्गा नहीं, मछली भी नहीं | शरीर की बनावट आदि के बारे में जायसवाल न स्पष्ट कर ही दिया है | चोर को आ ज तक कोई चोरी करने से न रोक पाया, जिन्हें अनुचित वस्तु में मज़ा आता है उन्हें कौन रोक पाता है,परन्तु वह उचित नहीं होजाता |
>जायसवाल का कथन वैज्ञानिक तथ्य है , चिकित्सा विज्ञानं समर्थित है, दालें,व दूध आदि में प्रथम श्रेणी की प्रोटीन होतीं हैं ,जो मांस में नहीं होतीं | , मांस के साथ उस पशु की बीमारियां , उसकी आदतें , मनोभाव भी आजाते हैं ,खाने वालों में , मांसाहार पूर्ण अवैज्ञानिक है , आदम ने सर्वप्रथम "फल " खाया था , बकरा नहीं , मुर्गा नहीं, मछली भी नहीं | शरीर की बनावट आदि के बारे में जायसवाल न स्पष्ट कर ही दिया है | चोर को आ ज तक कोई चोरी करने से न रोक पाया, जिन्हें अनुचित वस्तु में मज़ा आता है उन्हें कौन रोक पाता है,परन्तु वह उचित नहीं होजाता |
>अति अपवित्र आहार विधि,चीरे , वधे, पकाय |वध की क्रिया देखकर ,कभी मांस नहीं खाय ||
>अति अपवित्र आहार विधि,चीरे , वधे, पकाय |वध की क्रिया देखकर ,कभी मांस नहीं खाय ||
>खुर्शीद अहमद जीयदि आपकी माता जी का नाम जीनत है तो माँ का आदर करने के लिए जीनत नाम की खोज नहीं करनी पड़ेगी आप अपनी माँ का आदर अपनी आस्था से करते हो. इस प्रकार कुरान का अर्थ क्या है या हिन्दू शब्द कहाँ से आया इसको मानाने के लिए कोई ज्यादा ज्ञान और विशेष खोज की आवश्यकता नहीं है. हिन्दू शब्द पर परिचर्चा के लिए अभी आप बहुत ही छोटे और अल्पज्ञानी हो.