स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़

आइकन

सलीम खान का एक छोटा सा प्रयास

>साम्प्रदायिकता का निवारण

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साम्प्रदायिकता देश की अस्मिता के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। यह देश इसी के कारण अनेक बार और अनेक वर्षों तक पराधीन रहा है। साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय भावना के उदय होने में सबसे बड़ा अवरोध है। साम्प्रदायिकता से देश की स्वतंत्राता के लिए बहुत बड़ा संकट है। जब साम्प्रदायिकता की महामारी इतनी विकराल एवं भयावह है तो इसका निदान अवश्य ही खोजा जाना चाहिए। इसके निदान के लिए हमें इसके कारणों की खोज करना चाहिए और इसके प्रसारण के जो कारण हैं उन पर कारगर प्रतिबंध लगाये जाने चाहिए। 

साम्प्रदायिक तत्व अफवाहों के सहारे इसका प्रसार करते हैं। इसके प्रसार के कारणों को रोका जाना चाहिए। साम्प्रदायिकता के विरुद्ध धर्म निरपेक्षता एक कारगर प्रयास है इस लिए धर्म निरपेक्षता का प्रचार प्रसार होना चाहिए। 
साम्प्रदायिकतावाद परम्परावाद की जड़ से निकलता है। परम्पराओं के प्रति मोह साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। यह सही है कि परम्परा में कुछ ऐसे जीवन तत्व होते हैं जो सामाजिक चेतना के अंग होते हैं पर इन परम्पराओं को इतना स्वार्थपरक बना दिया गया है कि इनसे अहित अधिक होता है और हित कम। इसलिए परम्परा का पीछा करना अब औचित्यहीन रह गया है। 
साम्प्रदायिकता से देश विभाजन का खतरा है। साम्प्रदायिकता के जहर ने सम्पूर्ण देश को विषाक्त बना डाला है। हमें यह जानना बहुत आवश्यक है कि वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिससे साम्प्रदायिकता का विषवृक्ष पल्लवित हुआ। हमें इन परिस्थितियों के अध्ययन के बाद उन्हीं संदर्भों में इसका निदान खोजना चाहिए। 
यह सच है कि यहां में मुगलों से पूर्व शक, हूण, कुशान के आक्रांता आये थे जिन्होंने देश के धन को भरपूर लूटा, सामूहिक कत्लेआम किये और
स्त्री-पुरुषों को दास दासियां बना कर ले गये जहां उनमें से पुरुष का मूल्य 5 रुपया और स्त्री का मूल्य 10 रुपया लगा कर चौराहों पर नीलाम कर दिया गया। ये आक्रांता आये और चले गये थे। जब मुगल भारत में आये तो वे वापस नहीं गये। यह घोर निकृष्ट सोच है कि भारत का हिन्दू शक और हूणों को विदेशी और आक्रांता नहीं कहता है और न आर्यों को ही जिन्होंने 60 हजार अनार्यों का कत्लेआम किया था। शक, हूण, कुषान तीनों ही बाहरी हत्यारे आक्रांता थे पर वे भारत में बस गये। इन आक्रांताओं और मुगलों में क्या अंतर है फिर मुगलों को आक्रांता कहना कितनी बेइमानी की बात है। सच बात तो यह है कि मुगलों ने तो कोई कत्लेआम भी नहीं किया। अकबर ने तो सर्वधर्म समभाव की भावना से प्रेरित होकर दीन ए इलाही चलाया था। औरंगजेब जिस प्रकार बदनाम किया जाता है वह घृणा भाव के कारण बदनाम किया जाता है वरना अनेक हिन्दू उसके दरबार में उच्च पदों पर थे। अनेक मंदिरों के लिए उसने शाही खजाने से धन दिया था। उसे ‘जजिया कर’ के लिए बदनाम किया जाता है पर जजिया तो उसने मुसलमानों पर भी लगाया था। औरंगजेब ने कोई मंदिर नहीं तुड़वाया बल्कि अनेक उदाहरण ऐसे भी मिल जायेंगे जहां स्वयं हिन्दू राजाओं द्वारा मंदिरों को ध्वस्त कराया गया था। कश्मीर के राजा हर्ष ने तो अनेक मूर्तियों को तुड़वाया था। मौर्य शासकों ने तो तमाम हिन्दू मूर्तियों को पिघला कर सिक्कों के लिए धातु इकट्ठी करायी थी। 
खोजने पर नये तथ्य प्रकट हुए हैं कि
भारत का इतिहास अंग्रेजों ने कम और हिन्दू लेखकों ने अधिक झूठे तथ्य घुसेड़ कर साम्प्रदायिक बनाया है और मुसलमानों के प्रति विषवमन किया है। विशम्भर नाथ पांडे पूर्व राज्यपाल उड़ीसा ने लिखा कि वे जब टीपू सुल्तान पर शोध कर रहे थे तो एक छात्रा के पास पुस्तक देखी, जिसमें लिखा था कि टीपू सुल्तान ने तीन हजार ब्राह्मणों को बलात इस्लाम धर्म कुबूल करने को विवश किया था और तीन हजार ब्राह्मणों ने आत्महत्या कर ली थी। यह लेख एक हिन्दू लेखक पंडित हरप्रसाद शास्त्री का लिखा हुआ था। विशम्भर दयाल पांडे ने पं. हर प्रसाद से लिख कर पूछा कि यह कहां पर लिखा है तो हर प्रसाद ने कहा कि यह मैसूर के गजट में लिखा है पर गजट देखा गया, तो गजट में यह तथ्य कहीं नहीं पाया गया। इस प्रकार हिन्दू लेखकों ने मुसलमान बादशाहों के बारे में वैमनश्यतावश बहुत कुछ झूठ लिखा है। यही औरंगजेब के बारे में भी है। टीपू के बारे में तो यह प्रसिद्ध है कि उसका सेनापति ब्राह्मण था, वह 150 मंदिरों को प्रतिवर्ष अनुदान देता था, और श्रृंगेरी के जगतगुरु को बहुत मान्यता देता था। इससे साबित होता है कि इतिहास जानबूझ कर अंग्रेज लेखकों ने नहीं हिन्दू लेखकों ने ही झूठ लिखा है। 
देश का विभाजन हुआ इसके लिए मुसलमान दोषी नहीं है। यदि गहराई से खोज की जाय तो तथ्य यही सामने आते हैं कि इसकी योजना तो सावरकर जैसे हिन्दू नेताओं के घरों में बनायी गयी थी। इस प्रकार मुसलमानों को दोषी ठहराना नितांत गलत है। 
स्वतंत्रता के बाद यह सोचा गया था कि अब इस प्रकार का वातावरण तैयार किया जायगा जिससे देश में साम्प्रदायिकता की आग को ठंडा किया जायगा, किन्तु दुर्भाग्य है कि भारत की सरकार ने पिछले 60 साल में साम्प्रदायिक सौहार्द को बनाने के बजाय इसकी खाई को अधिक चौड़ा ही किया है। संविधान में भी स्पष्ट लिखा गया है कि किसी भी धार्मिक संगठन को सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यों के अतिरिक्त किसी भी प्रकार साम्प्रदायिकता उभारने की अनुमति नहीं दी जायगी। पर हम बराबर देख रहे हैं कि साम्प्रदायिकता बराबर उभारी गयी है और संविधान को भी ताक में रख दिया गया है। कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए भी केरल और पंजाब में खूब धार्मिक नाटक खेले। आज तो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर राजनैतिक पार्टियां बन रही हैं। आज तो धर्म के नाम पर ही नेतागीरी चमक रही है। धर्म के नाम पर राजनैतिक नेता यात्रायें निकाल रहे हैं। आज विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों में कटुता पैदा करके राजनीति चलायी जा रही है। आज इस देश में धर्मयुद्ध लड़े जा रहे हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि राजनीति के हर नापाक गठबंधन को रोका जाय। साम्प्रदायिकता राष्ट्र प्रजातंत्रा और समाज की दुश्मन है इससे बचा जाय। धर्म की राजनीति करने वाले चाहे वे व्यक्ति हों, चाहे संगठन इन पर रोक लगायी जाय और इनका दमन किया जाय।

आज साम्प्रदायिकता के विरुद्ध प्रभावी आंदोलन की आवश्यकता है। साम्प्रदायिकता का प्रश्न आज काफी जटिल हो चुका है। हमने इसे रोकने के लिए न तो कोई वैकल्पिक उपाय खोजा, न कोई संवैधानिक निदान ढूंढा। हमारे राजनैतिक दलों ने तो साम्प्रदायिकता का ही सहारा लिया। हिन्दू की मानसिकता यह बन चुकी है कि मुसलमान पाकिस्तान लेकर अपने हिस्से का भाग ले चुके हैं अब उन्हें भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है और यदि रहना है जो उनके अधीन होकर रहें। 
हमारे इस साम्प्रदायिक जुनून के लिए बहुत कुछ कानूनी व्यवस्था का अभाव और संवैधानिक निष्क्रियता भी दोषी है हमारा संविधान तो निष्क्रिय इसलिए हो रहा है क्योंकि वह 50-60 साल से ऐसे हाथों में ही रहा है जो साम्प्रदायिकता उत्प्रेरक और प्रयोग करने वाले ही थे। हमारे यहां कानून ऐसा कोई नहीं बना है जो किसी घटना से पहले उसे रोकता हो या दंडित करता हो। यहां घटना हो जाने पर कानून काम करना प्रारम्भ करता है। हमारे यहां की न्याय व्यवस्था दूषित है क्योंकि किसी को दंडित करने के लिए इसमें साक्ष्य चाहिए। हत्या हुई, जज ने भी देखा, सरकारी वकील ने भी देखा पर अपराधी को दंड तभी मिलेगा जब कोई गवाह, चाहे फर्जी ही क्यों न हो, अदालत में जाकर अपना बयान दर्ज कराये। हमारा कानून तो ऐसा भी है कि घटना हुई ही न हो और गवाह अदालत में झूठी गवाही दे दे तो आरोपी को सजा कर देगा, जहां कानून इस प्रकार अंधा हो उससे विवेक की आशा नहीं करनी चाहिए।
हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है। यह एक सामंती मनोवृत्ति है जो समानता की भावना के विपरीत है। यह सामंतवादी दर्शन हिन्दू समाज की आधारशिला है। इसमें सहनशीलता की कोई गुंजाइश नहीं है। आज अनेक हत्याकांड केवल श्रेष्ठता की सामंती भावना के परिणामस्वरूप ही 
ऊँचे हिन्दुओं द्वारा दलितों के किये जाते हैं। ये अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं इसलिए मुसलमानों की हत्याएं करते हैं। इस प्रकार सामंतवादिता और श्रेष्ठता की भावना ने सहनशीलता समाप्त कर हिन्दू समाज में जड़ता पैदा कर दी है। इस जड़ता को जब कोई कुरेदता है तो हिंसक साम्प्रदायिकता खड़ी हो जाती है। सन्‌ 1955 से लेकर 1989 तक अस्पृश्यता अपराध अधिनियम और अनुसूचित जाति अत्याचार अपराध अधिनियम इसी कारण असफल हो गये। इस प्रकार इस श्रेष्ठता और सामंतवादी भावना का उन्मूलन हुए बिना साम्प्रदायिकता को रोक पाना सम्भव नहीं है। 
कुछ विचारकों की यह धारणा है कि
साम्प्रदायिकता के विरुद्ध समाज को शिक्षित किया जाय और शिक्षा का स्तर बचपन से ही सुधारा जाय परंतु जहां शिक्षा के कोर्स में साम्प्रदायिकता उभाड़ने वाले पाठ होंगे, अंधविश्वास और धर्मांधता वाले पाठ बच्चों को पढ़ाएं जायेंगे वहां साम्प्रदायिकता बढ़ने के अतिरिक्त घटने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। इसीलिए यह आवश्यक है कि बच्चों के लिए शिक्षा का पाठ्यक्रम राष्ट्रीय सहमति के आधार पर निर्धारित किया जाय। 
साम्प्रदायिकता के विरुद्ध एक आंदोलन की आवश्यकता है जो भाषणों तक सीमित न रह कर व्यवहार में उतारा जाना चाहिए। सामूहिक विवाह, सामूहिक भोज और सामूहिक गोष्ठियां होनी चाहिए। आक्रोश हिंसा को बढाता है। आंदोलनों से साम्प्रदायिक आक्रोश घटेगा और हिंसा पर रोक लगायी जा सकेगी। 
श्रेष्ठता पर आधारित साम्प्रदायिकता का भाव मनुष्यता के अस्तित्व को नकारता है और यह मनुष्य के जीने की स्वायत्तता को स्वीकार नहीं करता है। जनतंत्रा इसके लिए एक अतिउत्तम माध्यम है। हमारे यहां सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि किताबी रूप में हमने जनतंत्रा को वरण कर लिया है पर व्यवहार में इसे जातिवाद और धर्मवाद से घिनौना बना दिया है। एक धर्म और जाति के लोग अपने प्रत्याशी को विधानसभा और लोकसभा में पहुंचाने के लिए बूथ कैप्चर कर लेते हैं। हां बूथ कैप्चरिंग यदि निचली जातियों द्वारा की जाती होती तो कोई कारगर उपाय सत्ता द्वारा अवश्य कर दिया गया होता चूंकि सत्ता पर उच्चवर्ण हावी है और बूथ कैप्चर उन्हीं के लोग करते हैं तो वे इस पर क्यों रोक लगायें। यह भी साम्प्रदायिकता है। इसने तो प्रजातंत्रा को इतना दूषित बना दिया है कि दुर्गंध आने लगी है। प्रजातंत्रा का आशय यही था कि हर आदमी को सत्ता में समान हिस्सेदारी मिले और कमजोर को भी सबल के समान सबल बनाया जाय। पर ऐसा हुआ नहीं। यदि प्रजातंत्रा को ही सही 
अर्थ में भारत में लागू कर दिया जाय तो साम्प्रदायिकता के उन्मूलन में बहुत कुछ सहयोग मिल सकता है। 
भारत में जब भी साम्प्रदायिकता की बात चलती है तो उसका आशय हिन्दू मुस्लिम सम्बंधों से ही लिया जाता है। यदि साम्प्रदायिक समस्या के समाधान की बात कही जाती है तो हिन्दू मुस्लिम विरोध को समाप्त करने का ही अर्थ माना जाता है। भारत में सम्प्रदाय का संदर्भ हिन्दू मुस्लिम ही है। यदि हिन्दू मुस्लिम किसी सहयोगात्मक प्रयास से भेद मिटाने में सफल हो जाते हैं तो भारत साम्प्रदायिकता से मुक्त देश कहलाया जा सकता है। जातिगत भेद रहेगा सवर्ण और अवर्ण का भेद रहेगा। पर साम्प्रदायिकता का उन्मूलन माना जा सकता है। क्योंकि अब तक की साम्प्रदायिकता का भारतीय परिवेश में धर्म ही आधार माना जाता रहा है। 
हिन्दू मुस्लिम समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ यद्यपि अंग्रेजों से स्वतंत्रा हुए भारत ने 60 साल बिता दिये। इसके कुछ राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक कारण रहे हैं किन्तु धर्म ही साम्प्रदायिकता के मूल में आता है। 
साम्प्रदायिकता के हल के लिए हम हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मों के दृष्टिकोण को समझ कर ही यदि इसके उन्मूलन का कोई निदान खोजें तो सफलता के निकट शीघ्र पहुंच सकते हैं। 
यदि इस्लाम के धार्मिक दृष्टिकोण को समझा जाय तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि स्वार्थ और सत्ता के लालच के कारण ही इस्लाम और मुसलमान समुदाय की हिन्दुओं द्वारा आलोचना की गयी है। इस्लाम को असहिष्णु तथा मुसलमानों को आक्रामक बताया है किन्तु यह हिन्दू कथन नितांत गलत एवं भ्रामक है। हिन्दू और हिन्दू धर्म की तुलना में इस्लाम और मुसलमान अधिक सहिष्णु है। यहां दोनों धमोर्ं और समुदायों की तुलना का विषय नहीं है अन्यथा यह सिद्ध करने में एक अलग से पूरा ग्रंथ ही बन जायगा। इस तुलना को छोड़ कर हम यह सिद्ध कर रहे हैं कि यह मात्रा हिन्दुओं का पूर्वाग्रह है और पूर्ण राजनैतिक सत्तासीन होने का फरेब है। हम इस्लाम के कुछ सिद्धांतों का जिक्र करते हैं। इससे यह समझने में समर्थ हो सकेंगे कि यह धर्म सहिष्णु है या असहिष्णु है। इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि यह धर्म यह कहता है कि जो इस्लाम का बंदा नहीं वह काफिर है अर्थात्‌ वह एकत्ववाद का हामी है और अनेकत्व को नकारता है। परंतु ऐसा नहीं है। सबके लिए कुरान कहता है, देखियेᄉ ”यदि अल्लाह की मर्जी होती तो तुम सबको एक ही जन समुदाय बनाता परंतु वह उसी में तुम्हारी परीक्षा ले सकता है जो तुम्हें उसने दिया है।” (कुरान- 5:48) इससे स्पष्ट होता है कि वह दूसरों को भी समान मान्यता देता है। 
आगे कुरान कहता हैᄉ ”हमने हर जाति समूह के लिए धर्माचरण के नियम निश्चित कर दिये हैं जिसका वे पालन करते हैं इसमें ऐसा कुछ नहीं किया जिस बात को लेकर वे तुझसे झगडं+े।” (कुरान-22-67) आगे कुरान और स्पष्ट करते हुए हर धर्म के प्रति आदर भाव रखने की स्पष्ट घोषणा करता हैᄉ ”हर समुदाय के लिए हमने कुछ धार्मिक किया कर्म तय कर दिये हैं जिनका पालन करते हुए वे परवर दिगार का नाम पढ़ सकते हैं।” (कुरान 22:34)। कुरान इस्लाम को स्पष्ट करते हुए कहता है कि यह धर्म बाध्यता का समर्थन नहीं करता है अर्थात्‌ किसी को बाध्य नहीं करता कि वह इस्लाम का बंदा बन जाये (कुरान-2:256)। इस्लाम के बारे में प्रचार किया जाता है कि वह दूसरे धर्मस्थलों को खसाने की सलाह देता है। कुरान कहता हैᄉ ”यदि अल्लाह ने कुछ लोगों को दूसरों के द्वारा नहीं रोका होता तो मंदिर और गिरजाघर जिनमें अल्लाह का ही नाम लिया जाता है नष्ट कर दिये गये होते।” (कुरान-22:40)। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि कुरान मंदिर और गिरजाघर सबको आदर देता है। इसलिए मंदिरों को मुसलमानों द्वारा ढहाने की इजाजत नहीं देता है। इस्लाम के बारे में प्रचार किया जाता है कि वह यह शिक्षा देता है कि जो इस्लाम का बंदा नहीं उसको कत्ल कर दो, किन्तु यह भी झूठ है। कुरान कहता है किसी पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है जो चाहे वैसा धर्म अपनाये। कुरान कहता हैᄉ ”हर कौम के लिए एक मसीहा है न्याय उसी के द्वारा निपटाया जाता है।” (कुरान-10-47)। कुरान हर धर्म पैगम्बर अवतार को बराबर मानता है। 
इस प्रकार कुरान की शिक्षाएं किसी धर्म या किसी धर्म के अवतार के विरुद्ध नहीं हैं।
हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान उन्हें काफिर कहते हैं। एक किस्सा आता है कि हजरत मौहम्मद ने बहरीन और ओमान के लोगों से संधि की थी और उन्हें स्वीकार किया था। इस प्रकार हजरत मौहम्मद साहब जब दूसरों से मिलने की बात करते हैं तो हिन्दुओं के साथ क्यों नहीं मिल सकते थे। 
यह तो रही कुरान और हजरत साहब की बातें अब यहां कुछ इस्लाम के विद्वानों के विचार भी देखिएᄉ इतिहासकार अलजहीज कहता है कि ÷भारत एक बहुत तरक्की वाला देश है’ अब्दुल करीम शहरस्तानी कहता है कि भारतवासी एक महान समुदाय है। अलम सूदी ने तो ब्राह्मणों तक की तारीफ की है। इस प्रकार मुसलमान विद्वानों ने भारत के हिन्दुओं की आलोचना नहीं तारीफ की है। तीसरे खलीफा उथमान ने तो असभ्य और क्रूर अफ्रीकन तक को अच्छा बताया है फिर हिन्दुओं को कैसे बुरा बताया होगा। मौहम्मद इब्न कासिम को उलेमाओं ने सलाह दी थी कि हिन्दुओं को काफिर न कहा जाय। संत निजामुद्दीन औलिया ने कहा थाᄉ ÷हर कौम का (हिन्दू का भी) अपना एक धर्म है’ᄉ महाराष्ट्र के सूफी संत ने मराठी और संस्कृत में अपना ÷योग संग्रह’ लिखा। गुजरात के कुछ सूफियों ने तो हजरत को ही कृष्ण का अवतार लिख दिया। 
इस प्रकार इस्लाम धर्म का कुरान, हजरत पैगम्बर मौहम्मद साहब और उलेमा के हिन्दू धर्म और हिन्दुओं से नफरत न करने की ही सलाह देते हैं फिर उन पर हिन्दुओं के विरोधी होने का आरोप सही नही हैं। 
दूसरी ओर हिन्दू धर्म की पुस्तकें रामायण, वेद, शास्त्राों में मुसलमानों को यवन म्लेच्छ कह कर गालियां दी गयी हैं। वेदों में कहा गयाᄉ ”हम जिनसे घृणा करते हैं या जो हमसे घृणा करते हैं उन्हें ऐ दसों दिशाओं के देवताओं उन्हें तुम अपने जबड़ों में रख कर खा जाओ।” तुलसी की रामायण कहती हैᄉ ÷आमीर यवन किरात खस स्वंपचादि अतिअघ उ+पजे’ अर्थात यवन अत्यंत नीच पैदाइश है। 
इस प्रकार हम यदि यथार्थ कहना चाहें तो तथ्य यही है कि इस्लाम, उसके पैगम्बर उलेमा और महान फकीर और लेखक अधिक सहिष्णु हैं तुलना में हिन्दू धर्मशास्त्रा और हिन्दुओं के नेताओं और धर्माचायोर्ं के। अतः मुसलमानों को असहिष्णु कह कर उनकी आलोचना करना हिन्दुओं में एक फैशन बन गया है जो वैमनस्य बढ़ाने के लिए बहुत अंश तक जिम्मेदार है। 
जो दृष्टिकोण हिन्दू धर्मग्रंथ, हिन्दू देवता, संत, मुनी इस्लाम के प्रति विद्वेष भरा रखते हैं वही झगड़े की जड़ हैं। हिन्दू राजनीतिज्ञ तो और भी इस साम्प्रदायिकता को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। इंदिरा गांधी का ही उदाहरण हमारे सामने है। हिन्दू कट्टरवादिता का बढ़ता जोर देख कर कि कहीं इसका लाभ भाजपा न उठाने पाये उन्होंने अपने को कट्टर हिन्दू दिखाने और उसका राजनैतिक लाभ उठाने के लिए आपरेशन ब्लू स्टार जैसी योजना बना दी। उन्होंने भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद से घबरा कर राजनैतिक लाभ उठाने के लिए सिक्खों पर हमला करवा कर साम्प्रदायिकता का नंगा नाच किया और 5 हजार सिक्ख को गुरुद्वारे के अंदर ही मारे गये। जो इंदिरा गांधी ने किया राजीव गांधी ने उसी साम्प्रदायिकता की भावना से सारे भारत में हिन्दू सिक्ख दंगे करा दिये और 10 हजार सिक्ख सारे भारत में मारे गये। जो समस्या सिक्खों की है वही समस्या भारत में मुसलमानों की है। इस प्रकार यदि हम निष्पक्ष विश्लेषण करें तो हिन्दू से मुसलमान कहीं अधिक सहिष्णु है और कम साम्प्रदायिक है। ये तो हिन्दू ही हैं जो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर देश में दंगा भड़का कर आग लगाने की साजिश करते रहते हैं। 
हिन्दू एक अनर्गल आरोप मुसलमानों पर यह भी लगाते हैं कि वे राष्ट्र की मुख्य धारा के अंग नहीं बने हैं। हिन्दू चाहते हैं कि मुसलमान हिन्दू की हर धारा को मान लें और अपनी शरियत कुरान सब छोड़ कर हिन्दू के नागरिक कानून को स्वीकार लें तभी वे राष्ट्र धारा से जुड़े माने जायेंगे। हिन्दू मुसलमानों को केवल इसलिए साम्प्रदायिक, राष्ट्रविरोधी और अनेक घृणाजनक अपमानों से सम्बोधित करता है क्योंकि वह यह चाहता है कि मुसलमान अपना ईमान बदल कर हिन्दू पंथ स्वीकार कर लें। आज वहीं ज्यादा साम्प्रदायिकता दिखाई देती है जहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जो हिन्दू बाहुल्य प्रांत हैं वही हिन्दू मुस्लिम दंगे अधिक होते हैं। तामिलनाडु, केरल, असम जैसे इलाकों में हिन्दू मुस्लिम तनाव नहीं के बराबर हैं क्योंकि यहां मुसलमान अधिक और हिन्दू बहुत कम हैं। इन इलाकों में मुसलमान और ईसाई द्रविड़ आदिवासी अधिक रहते हैं। 
यदि हिन्दू सहिष्णुता से काम लेना प्रारम्भ कर दें तो हिन्दू मुसलमान साम्प्रदायिकता की समस्या हल हो सकती है। हमारे नेताओं ने इसीलिए धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्रा का मार्ग चुना था ताकि साम्प्रदायिक शक्तियों का जोर कम रहे पर दुर्भाग्य से हिन्दू कट्टरपन ने धर्मनिरपेक्षता को सदैव कमजोर किया है और जो हिन्दू शासक रहे हैं वे हिन्दू मुस्लिम भावना से ग्रसित हैं।

प्रस्तुति: सलीम खान

Filed under: साम्प्रदायिकता, साम्प्रदायिकता का निवारण, हिन्दुत्व

16 Responses

  1. वरुण जायसवाल कहते हैं:

    >देखो सलीम अभी तुम बच्चे हो , जिस दिन धर्म के बारे में जान जाओगे उसी दिन धर्म – निरपेक्ष हो जाओगे , जिन बातों को तुम इतिहास की तोड़ – मरोड़ कह रहे हो उनकी प्रमाणिकता साबित करने या समझने का अध्ययन तुमने नहीं किया है ऐसा मेरा स्पष्ट मत है | धर्म – निरपेक्ष होने से पूर्व अध्ययन निरपेक्षता की कसौटी को पूरा करो |रही बात तुम्हारी सोच की तो डॉ जाकिर नाइक के अधकचरे तर्कों का पूरा प्रभाव दीखता है | स्वयं का अध्ययन विकसित करना ही तुम्हारे लिए श्रेयस्कर होगा | तभी तर्क से निष्कर्ष पर पहुँच सकते हो ||धन्यवाद ||

  2. Varun Kumar Jaiswal कहते हैं:

    >देखो सलीम अभी तुम बच्चे हो , जिस दिन धर्म के बारे में जान जाओगे उसी दिन धर्म – निरपेक्ष हो जाओगे , जिन बातों को तुम इतिहास की तोड़ – मरोड़ कह रहे हो उनकी प्रमाणिकता साबित करने या समझने का अध्ययन तुमने नहीं किया है ऐसा मेरा स्पष्ट मत है | धर्म – निरपेक्ष होने से पूर्व अध्ययन निरपेक्षता की कसौटी को पूरा करो |रही बात तुम्हारी सोच की तो डॉ जाकिर नाइक के अधकचरे तर्कों का पूरा प्रभाव दीखता है | स्वयं का अध्ययन विकसित करना ही तुम्हारे लिए श्रेयस्कर होगा | तभी तर्क से निष्कर्ष पर पहुँच सकते हो ||धन्यवाद ||

  3. >वरुण भाई आप सही हो सकते है. हो सकता है कि मैं अभी बच्चा हूँ. यह भी हो सकता कि मैं धर्म निरपेक्ष नहीं हूँ. लेकिन यह सत्य है कि आपने बड़े प्यार से मुझे समझाने की कोशिश की कि मैं गलत हूँ. और यह भी सत्य है कि मैं डॉ जाकिर नाईक से मुतास्सिर हो कर अपने लेख लिखता हूँ. लेकिन यह भी सत्य ही है कि आप डॉ जाकिर नाईक के लेख अथवा किताबें नहीं पढ़ी है आपने तो वेद भी ढंग से नहीं पढ़े होंगे. गारंटिड… मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ और अपने वतन से उतना ही प्यार करता हूँ जितना कोई भी देशभक्त बल्कि उससे भी बढ़कर. देश में साम्प्रदायिकता का घिनौना खेल जो लोग खेल रहे है उससे तो यही साबित हो रहा है कि जिस तरह से भारत में बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया और मुसलमानों को बिना सबूत के टारगेट किया जा रहा है. उस तरह से देश में अस्थिरता पैदा करने वालों का सेल्फ रिक्रूटमेंट ही किया जा रहा है.रहा सवाल इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का तो यह काम तो सदियों पहले से ही छद्म राष्ट्रवादियों ने किया है, हमने नहीं. हमें आप धर्म निरपेक्ष का पाठ पढ़ा रहे है ज़रा मेरे ब्लॉग में महत्वपूर्ण ब्लॉग की श्रेणी में सुरेश चिपलूनकर का ब्लॉग भी देख ले. मैंने तो यह पहला लेख लिखा है. जिसमें कुछ ज्वलंत मुद्दे उठ खडे हुए. वहां आपको सैकणों मिल जायेंगे. खैर… इस्लाम क्या है जानने के लिए आप मोहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) की जीवनी का मुताला करें और वेदों को पढ़े जिसमें उनके ईश्वरीय संदेष्ठा होने की पुष्टि की गई है और कुरान का अध्ययन करें जिसे ईश्वर ने पुरे मानवजाति ही नहीं, पूरी दुनिया ही नहीं, पुरे ब्रह्माण्ड का नियम है, यह मैं नहीं कह रहा आप स्वयं पढ़ कर देखें.ईश्वर की आप पर कृपा हो.आपका छोटा भाई,सलीम खान

  4. सलीम ख़ान कहते हैं:

    >वरुण भाई आप सही हो सकते है. हो सकता है कि मैं अभी बच्चा हूँ. यह भी हो सकता कि मैं धर्म निरपेक्ष नहीं हूँ. लेकिन यह सत्य है कि आपने बड़े प्यार से मुझे समझाने की कोशिश की कि मैं गलत हूँ. और यह भी सत्य है कि मैं डॉ जाकिर नाईक से मुतास्सिर हो कर अपने लेख लिखता हूँ. लेकिन यह भी सत्य ही है कि आप डॉ जाकिर नाईक के लेख अथवा किताबें नहीं पढ़ी है आपने तो वेद भी ढंग से नहीं पढ़े होंगे. गारंटिड… मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ और अपने वतन से उतना ही प्यार करता हूँ जितना कोई भी देशभक्त बल्कि उससे भी बढ़कर. देश में साम्प्रदायिकता का घिनौना खेल जो लोग खेल रहे है उससे तो यही साबित हो रहा है कि जिस तरह से भारत में बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया और मुसलमानों को बिना सबूत के टारगेट किया जा रहा है. उस तरह से देश में अस्थिरता पैदा करने वालों का सेल्फ रिक्रूटमेंट ही किया जा रहा है.रहा सवाल इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का तो यह काम तो सदियों पहले से ही छद्म राष्ट्रवादियों ने किया है, हमने नहीं. हमें आप धर्म निरपेक्ष का पाठ पढ़ा रहे है ज़रा मेरे ब्लॉग में महत्वपूर्ण ब्लॉग की श्रेणी में सुरेश चिपलूनकर का ब्लॉग भी देख ले. मैंने तो यह पहला लेख लिखा है. जिसमें कुछ ज्वलंत मुद्दे उठ खडे हुए. वहां आपको सैकणों मिल जायेंगे. खैर… इस्लाम क्या है जानने के लिए आप मोहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) की जीवनी का मुताला करें और वेदों को पढ़े जिसमें उनके ईश्वरीय संदेष्ठा होने की पुष्टि की गई है और कुरान का अध्ययन करें जिसे ईश्वर ने पुरे मानवजाति ही नहीं, पूरी दुनिया ही नहीं, पुरे ब्रह्माण्ड का नियम है, यह मैं नहीं कह रहा आप स्वयं पढ़ कर देखें.ईश्वर की आप पर कृपा हो.आपका छोटा भाई,सलीम खान

  5. safat alam कहते हैं:

    >बहुत बहुत बधाई। यह लेख और आपके सारे लेख बहुत अच्छे हैं। वरुण भाई की टिप्पणी से बहुत आश्चर्य हुआ कि वह आपको ध्रमनिरपेक्षता की शिक्षा दे रहे हैं। वरूण भाई!ज़रा आप दिल पर हाथ रख कर बताएं कि आपकी रचना किसने की? माँ ने? नहीं – आकस्मिक रूप में भी नहीं आए। समाधान किया है ईश्वर को मानना- जो एक है अनेक नहीं, जिसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिसके पास माता पिता नहीं, जो रूप लेकर पृथ्वी पर अवतरित भी नहीं होता, उसने मानव को पैदा किया तो उन्हें जीवन बिताने को संदेष्टाओं द्वारा नियम भी अवतरित किया, हर देश और हर युग मैं ऐसे मार्गदर्शक आते रहे, जब मानव बुद्धि उच्च शिखर पर पहुंच गई तो ईश्वर ने कल्की अवतार को अंत में भेजा जिन पर क़ुरआन के नाम से ग्रन्थ उतारा जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है। वरुण भाई! आपको मुसलमानों से शत्रुता हो सकती है पर अपने ईश्वर के संदेश से मुंह न मोड़ें। रात में मैं ने बड़े आश्चर्य से गौर किया कि आखिर शिक्षित लोग भी ईश्वर का इमकार क्यों कर रहे हैं। कृपया एक बार निष्पक्ष हो कर क़ुरआन का अध्ययन करें। यह बातें मेरे दिल से निकली हुई हैं अपने दिल की भावना आप तक पहुंचा रहा हूं।

  6. safat alam taimi कहते हैं:

    >बहुत बहुत बधाई। यह लेख और आपके सारे लेख बहुत अच्छे हैं। वरुण भाई की टिप्पणी से बहुत आश्चर्य हुआ कि वह आपको ध्रमनिरपेक्षता की शिक्षा दे रहे हैं। वरूण भाई!ज़रा आप दिल पर हाथ रख कर बताएं कि आपकी रचना किसने की? माँ ने? नहीं – आकस्मिक रूप में भी नहीं आए। समाधान किया है ईश्वर को मानना- जो एक है अनेक नहीं, जिसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिसके पास माता पिता नहीं, जो रूप लेकर पृथ्वी पर अवतरित भी नहीं होता, उसने मानव को पैदा किया तो उन्हें जीवन बिताने को संदेष्टाओं द्वारा नियम भी अवतरित किया, हर देश और हर युग मैं ऐसे मार्गदर्शक आते रहे, जब मानव बुद्धि उच्च शिखर पर पहुंच गई तो ईश्वर ने कल्की अवतार को अंत में भेजा जिन पर क़ुरआन के नाम से ग्रन्थ उतारा जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है। वरुण भाई! आपको मुसलमानों से शत्रुता हो सकती है पर अपने ईश्वर के संदेश से मुंह न मोड़ें। रात में मैं ने बड़े आश्चर्य से गौर किया कि आखिर शिक्षित लोग भी ईश्वर का इमकार क्यों कर रहे हैं। कृपया एक बार निष्पक्ष हो कर क़ुरआन का अध्ययन करें। यह बातें मेरे दिल से निकली हुई हैं अपने दिल की भावना आप तक पहुंचा रहा हूं।

  7. >@सफत आलम जी, टिपण्णी देने का शुक्रिया. मुझे वरुण जी से शिकायत नहीं है मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि लोग साम्प्रदायिक न हो. कट्टरवाद भारत के नागरिकों में नस-नस में बस गया है उसे उखाड़ फेंकने का एकमात्र उपाय है कि वेद और कुरान का अध्ययन करा जाये |

  8. सलीम ख़ान कहते हैं:

    >@सफत आलम जी, टिपण्णी देने का शुक्रिया. मुझे वरुण जी से शिकायत नहीं है मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि लोग साम्प्रदायिक न हो. कट्टरवाद भारत के नागरिकों में नस-नस में बस गया है उसे उखाड़ फेंकने का एकमात्र उपाय है कि वेद और कुरान का अध्ययन करा जाये |

  9. क़ाफिर कहते हैं:

    >सलीम भाई और आपके सभी मित्रगणों से जो गाहे-बगाहे, साम्प्रदायिकता की बात करते रहते है, से एक गुज़ारिश है आप खुद या सभी मिल कर एक आलेख लिखें। जिसमें सोंच समझकर सम्प्रदाय,साम्प्रादायिकता को पहले व्याख्यायित करें। बहुधा लोग शब्द इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन मतलब नहीं जानते। साथ ही कभी-कभी साजिशन शब्दों को विशेष प्रयोजन से बदनाम कर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इस आशा के साथ कि आप वास्तव में हिन्दू मुस्लिम सौहार्द स्थापित करना चाहते है।

  10. क़ाफिर कहते हैं:

    >सलीम भाई और आपके सभी मित्रगणों से जो गाहे-बगाहे, साम्प्रदायिकता की बात करते रहते है, से एक गुज़ारिश है आप खुद या सभी मिल कर एक आलेख लिखें। जिसमें सोंच समझकर सम्प्रदाय,साम्प्रादायिकता को पहले व्याख्यायित करें। बहुधा लोग शब्द इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन मतलब नहीं जानते। साथ ही कभी-कभी साजिशन शब्दों को विशेष प्रयोजन से बदनाम कर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इस आशा के साथ कि आप वास्तव में हिन्दू मुस्लिम सौहार्द स्थापित करना चाहते है।

  11. MAYUR कहते हैं:

    >आप टीपू और अकबर के आलावा कहीं भी पूरी तरह सही नही दिखते-“शम्स उल-उलमा मौलाना मुहम्मद हुसैन “आज़ाद” ने अकबर की जीवनी लिखी है , और बड़े इतिहासकार है , शायद वे तो ग़लत नही लिखेंगे – आपकी बातें उनसे भी मेल नही खाती । उन के आलावा राहुल सन्क्रत्यन ने भी बहुत कुछ लिखा है, कृपया एक बार सार्थक इतिहास को पढ़कर इस विषय पर दोबारा लिखें । कृपया भ्रमित न करें

  12. MAYUR कहते हैं:

    >आप टीपू और अकबर के आलावा कहीं भी पूरी तरह सही नही दिखते-"शम्स उल-उलमा मौलाना मुहम्मद हुसैन "आज़ाद" ने अकबर की जीवनी लिखी है , और बड़े इतिहासकार है , शायद वे तो ग़लत नही लिखेंगे – आपकी बातें उनसे भी मेल नही खाती । उन के आलावा राहुल सन्क्रत्यन ने भी बहुत कुछ लिखा है, कृपया एक बार सार्थक इतिहास को पढ़कर इस विषय पर दोबारा लिखें । कृपया भ्रमित न करें

  13. Anonymous कहते हैं:

    >jis tarah muslims ke liye hindu kafir hain, waise hi hindus ke liye muslim Yawan/malechh hai, so no problem.rahi baat babri masjid ki to kya waha mandir nahi hona chahiye kyonki waha RAM ka janm huya, babar ne waha masjid banayi to masjid tod kar bhul sudhar ki gayi.History bhi jara thik se pad le…warna aapko to sari kamiya hinduon me najar aati hai….

  14. Anonymous कहते हैं:

    >jis tarah muslims ke liye hindu kafir hain, waise hi hindus ke liye muslim Yawan/malechh hai, so no problem.rahi baat babri masjid ki to kya waha mandir nahi hona chahiye kyonki waha RAM ka janm huya, babar ne waha masjid banayi to masjid tod kar bhul sudhar ki gayi.History bhi jara thik se pad le…warna aapko to sari kamiya hinduon me najar aati hai….

  15. >चलिए हम आपकी बात मान भी लें की वहां राम का जन्म हुआ था, फिर भी अभी तक यह सिद्ध नहीं हुआ है कि बाबरी मस्ज़िद की जगह मंदिर थी बल्कि यह तो एक कल्पना मात्र है कि वहां मंदिर था (जैसा कि कुछ लोग कहते हैं) और तो और संसद में यह बात यहीं की सरकार में कही थी कि राम नाम के व्यक्तित्व का अस्तित्व था ही नहीं. यह एक कल्पना मात्र है. हिन्दू धर्म में ज़्यादातर कल्पना, अति-उदारता और अंधविश्वाश का ही बोलबाला है, जो जैसा चाहता है वैसा अपने धर्म को आस्था की आड़ देकर तोड़-मरोड़ कर पेश करता और उसके मानने वाले एक एक करके अनेक हो जाते हैं, बिना समझे बुझे. यही नहीं मैं एक टीवी पर प्रोग्राम देखा था- उसमें इस ज़माने की कहानी (कल्पना) बना कर यह दिखया गया कि एक औरत के आगे तीनों (ब्रह्मा, विष्णु, शंकर) को झुकते हुए दिखाया जा रहा है. क्या यह सही है आपका इश्वर इस कदर नाटकीय है कि आपकी कल्पना में उसकी दशा इतनी दयनीय है कि वह बेबस हो जा रहा है. चलिए मान लेते है कि कुछ पुराणी किताबों में इश्वर के झुकने कि कथा हम बचपन में पढ़ चुके है लेकिन यह मोर्डेन औरत को यह तीनों इश्वर कहाँ से मिल गए और कब स्टोरी बन गयी… जी नहीं, यह बिजनेस है जिसे टीवी वाले फालतू की कहानी बना कर पैसा कमा रहे हैं.

  16. सलीम ख़ान कहते हैं:

    >चलिए हम आपकी बात मान भी लें की वहां राम का जन्म हुआ था, फिर भी अभी तक यह सिद्ध नहीं हुआ है कि बाबरी मस्ज़िद की जगह मंदिर थी बल्कि यह तो एक कल्पना मात्र है कि वहां मंदिर था (जैसा कि कुछ लोग कहते हैं) और तो और संसद में यह बात यहीं की सरकार में कही थी कि राम नाम के व्यक्तित्व का अस्तित्व था ही नहीं. यह एक कल्पना मात्र है. हिन्दू धर्म में ज़्यादातर कल्पना, अति-उदारता और अंधविश्वाश का ही बोलबाला है, जो जैसा चाहता है वैसा अपने धर्म को आस्था की आड़ देकर तोड़-मरोड़ कर पेश करता और उसके मानने वाले एक एक करके अनेक हो जाते हैं, बिना समझे बुझे. यही नहीं मैं एक टीवी पर प्रोग्राम देखा था- उसमें इस ज़माने की कहानी (कल्पना) बना कर यह दिखया गया कि एक औरत के आगे तीनों (ब्रह्मा, विष्णु, शंकर) को झुकते हुए दिखाया जा रहा है. क्या यह सही है आपका इश्वर इस कदर नाटकीय है कि आपकी कल्पना में उसकी दशा इतनी दयनीय है कि वह बेबस हो जा रहा है. चलिए मान लेते है कि कुछ पुराणी किताबों में इश्वर के झुकने कि कथा हम बचपन में पढ़ चुके है लेकिन यह मोर्डेन औरत को यह तीनों इश्वर कहाँ से मिल गए और कब स्टोरी बन गयी… जी नहीं, यह बिजनेस है जिसे टीवी वाले फालतू की कहानी बना कर पैसा कमा रहे हैं.

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